उत्तराखण्ड में दांव पर प्रतिष्ठा
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
उत्तराखण्ड मंे आगामी विधानसभा चुनाव में कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा व कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होगी। कांगे्रस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कह रहे हैं कि वे चुनाव लड़ेंगे नहीं बल्कि लड़ाएंगे लेकिन उनके चुनाव लड़ने की भी संभावना है। भाजपा उनके खिलाफ मजबूत प्रत्याशी उतारेगी। इसी प्रकार कांग्रेस की दिग्गज नेता रहीं इन्दिरा हृदयेश का उत्तराधिकारी किसको बनाया जाएगा? उनके बेटे सुमित क्या इन्दिरा हृदयेश की विरासत को संभाल पाएंगे? भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की परम्परागत सीट सितारगंज मंे भी प्रतिष्ठा की जंग होगी। इस सीट पर उनके बेटे सौरभ विधायक हैं और अगले चुनाव मंे भी दावेदारी जता रहे हैं। बंगाली और मुस्लिम बहुलतावाली इस सीट पर कांग्रेस की भी नजर टिकी है।
कभी कांग्रेस-बसपा का गढ़ रही सितारगंज विधानसभा सीट अभी भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। तराई की इस विधानसभा में बंगाली और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक हैं। यानी इन मतदाताओं का पलड़ा जिस दल की तरफ झुका, जीत का जीत का सेहरा उसके सिर बंधना तय है। प्रदेश में अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है, ऐसे में इस वीआईपी सीट की चर्चा लाजिमी है। दरअसल, सितारगंज विधानसभा सीट पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नाम से जानी जाती रही है। अभी यहां से उनकी विरासत को बेटे विधायक सौरभ बहुगुणा ने संभाल रखी है। इस विधानसभा सीट पर लगभग 40 प्रतिशत बंगाली मतदाता किसी दल के लिए जीत का बड़ा कारण हैं। वहीं दूसरे नम्बर पर लगभग 25 फीसदी मुस्लिम वोटर भी किसी दल के उम्मीदवार की जीत के लिए निर्णायक साबित होते हैं। बीते दिनों शक्तिफार्म में सीएम पुष्कर सिंह धामी की जनसभा में उमड़ी भीड़ से विधायक सौरभ बहुगुणा ने चुनाव से पहले पार्टी को क्षेत्र में अपनी ताकत का अहसास कराया है लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में यह ताकत बरकरार रहेगी या नहीं, इस पर सियासी जानकारों की नजरें टिकी हैं। सितारगंज विधानसभा सीट पर बंगाली समुदाय के मतदाताओं की बहुलता को देखते हुए चुनाव से पहले धामी सरकार इन्हें लुभाने का प्रयास कर रही है। सीएम धामी ने जिस तरह बंगाली समुदाय के नाम से पहले पूर्वी पाकिस्तान शब्द हटाकर उन्हें ना सिर्फ साधा है, बल्कि घर में रहने वाली महिलाओं को समूह के माध्यम से रोजगार देकर महिलाओं का भी नजरिया बदल दिया है। तराई में सितारगंज एक अकेली विधानसभा है जहां अल्पसंख्यक कहे जाने वाले बंगाली और मुस्लिम बड़ी संख्या में हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति, सिख और पर्वतीय समाज के मतदाता भी 10 से 15 प्रतिशत हैं। ऐसे में अब यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि कैसे 2022 में सौरभ बहुगुणा अपने पिता की दी विरासत को सहेजेंगे।
उधर, साल 2022 में हल्द्वानी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कद्दावर नेता इंदिरा हृदयेश का उत्तराधिकारी कौन होगा? इस सवाल पर उत्तराखंड कांग्रेस कैंपेन कमेटी के अध्यक्ष और पूर्व सीएम हरीश रावत ने सस्पेंस बढ़ा दिया है। इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरीश रावत के बेहद करीबी गोविंद सिंह कुंजवाल ने सुमित हृदयेश को ही इंदिरा का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना था। पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी तब कुंजवाल के सुर से सुर मिलाए थे लेकिन अब हरीश रावत ने अपनी बात साफ की है। हरीश रावत ने कहते हैं कि मुझसे जब पूछा गया कि इंदिरा जी के कामों को कौन आगे बढ़ाएगा, तो मैंने कहा कि उनके बेटे सुमित काम करते हैं तो वे उनके काम आगे बढ़ाएंगे। रावत के मुताबिक, काम आगे बढ़ाने का अर्थ चुनाव से नहीं होता। उसका अर्थ होता है जो सामाजिक जीवन। सामाजिक जीवन में माता-पिता के जो कर्तव्य होते हैं उन कर्तव्यों को बेटा और बेटी ही तो आगे बढ़ाते हैं। रावत ने कहा कि बहुत सारे निर्णय हमारे हाथ में नहीं होते। जनता के हाथ में होते हैं और चुनाव के वक्त में जीतने वाले को ही देखा जाएगा। यानी टिकट जीतने वाले प्रत्याशी को ही मिलेगा।’
राजनीति के जानकार हरीश रावत के इस बयान का गहरा अर्थ निकाल रहे हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस में सुमित हृदयेश को टिकट देने पर एक राय नहीं बन पाई है। रावत के इस बयान को हल्द्वानी से कांग्रेस का टिकट पाने की तैयारी कर रहे अन्य दावेदार अपनी आस के तौर पर देख रहे हैं। हालांकि इन सबके बीच इंदिरा के बेटे सुमित हृदयेश ने जनता के बीच सक्रियता और बढ़ा दी है। उनके चाहने वाले सुमित का टिकट पक्का मानकर चल रहे हैं। इंदिरा खुद सुमित को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुकीं थीं। बता दें कि 13 जून 2021 को दिल्ली मीटिंग के लिए गईं इंदिरा हृदयेश का दिल का दौरा पड़ने से अचानक निधन हो गया था। उनके निधन के बाद से ही उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं तेज हैं। इंदिरा ने सुमित को हल्द्वानी से मेयर का चुनाव भी लड़वाया था। यह अलग बात है कि सुमित मेयर का चुनाव हार गए थे। चुनावी तैयारियों में जुटे अन्य नेता इंदिरा हृदयेश के जीवित रहते हल्द्वानी से टिकट की मांग खुलकर नहीं कर पाते थे लेकिन इंदिरा के निधन के बाद से कई नेता दावेदारी कर रहे हैं। इन नेताओं में कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिका, राज्य आंदोलनकारी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हुकुम सिंह कुंवर, हरीश रावत के बेहद करीबी और पुराने कांग्रेसी खजान पांडे, पूर्व प्रदेश सचिव ललित जोशी, शशि वर्मा और शोभा बिष्ट जैसे नाम शामिल हैं।
एक बात और महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत 2022 में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं? इसको लेकर अब भी संशय बरकरार है। रावत के चुनाव लड़ने की कहानी को खुद रावत ने ही पेचीदा बना दिया है। रावत के ताजा बयान के मुताबिक उनकी इच्छा चुनाव लड़ने से ज्यादा कांग्रेस के प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने की है। हालांकि उन्होंने अंतिम फैसला कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी पर ही छोड़ा है। हरदा कहते हैं कि उनकी आदत किसी तरह की राजनीतिक सनसनी फैलाने की नहीं है। ‘मैं चाहता हूं कि मैं 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ने के बजाय कांग्रेस के प्रत्याशियों को मजबूती से खड़ा करूं ताकि कांग्रेस के ज्यादा से ज्यादा प्रत्याशी विधानसभा में पहुंचें। कांग्रेस की बड़ी बहुमत वाली सरकार उत्तराखंड में बने।’ रावत ने यह भी कहा, ‘कांग्रेस को चुनाव के लिए स्थानीय चेहरे की जरूरत पड़ेगी तो इस पर मैं पूरी तरह से तैयार हूं। इसके बावजूद अगर कांग्रेस आलाकमान ने कहा, तो हरीश रावत चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार है। हालांकि हरीश रावत चुनाव लड़ने से ज्यादा लड़ाने की इच्छा जाहिर कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो वह कहां से प्रत्याशी होंगे? इसे लेकर राजनीतिक कयासों का बाजार गर्म है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड की दो विधानसभाओं हरिद्वार ग्रामीण और ऊधम सिंह नगर की किच्छा से चुनाव लड़ने के बावजूद हरीश रावत को दोनों जगह से हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में हरीश रावत साल 2022 में कहां से चुनाव लड़ेंगे, यह सवाल बड़ा हो गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से दोबारा चुनाव लड़ सकते हैं या फिर किसी नई सीट का चयन कर सकते हैं। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा रामनगर, सल्ट और धारचूला सीट को लेकर है। धारचूला से तो हरीश रावत विधायक भी रह चुके हैं और फिलहाल इस सीट पर कांग्रेस मजबूत है क्योंकि पिछली दो बार से यहां हरीश धामी चुनाव जीत रहे हैं। (हिफी)दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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