कांटे बो रहे हैं
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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प्यार करके रो रहे हैं,
रंजोगम को ढो रहे हैं।१।
देखो प्यार के राह में-
लोग कांटे बो रहे हैं।२।
आंख दिखला रहे वे-
साथ मेरे जो रहे हैं।३।
कैसी गलती हो गई-
बस इसीको टो रहे हैं।४।
है ऐसा मनहूस पल कि-
चेहरा आंसू से धो रहे हैं।५।
क्यों सजा"मिश्रअणु"को
गलती करते वो रहे हैं।६।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)
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