प्यार
जाने तुमने क्या कर डाला
दर्पण से सम्बन्ध बढ़ गया
तन से चुनरी लगी खिसकने
पैरों में कम्पन सा बढ़ गया।
मन खोया खोया रहता है
दिन में सपने देखा करता है
तुमसे मिलन को आतुर रहता
आकुल व्याकुल उलझा रहता है।
वाणी पर भी कहां नियन्त्रण
सोचूं कुछ, बोला कुछ करती
सखी सहेली करें ठिठौली
बहका बहका यौवन लगता है।
दर्पण को जब भी मैं निहारूं
तू ही तू उसमें दिखता है
तेरी खातिर श्रंगार करूं पर
कहीं अधिक- कम लगता है।
देख तुझे दर्पण में अक्सर
हया से आंखें बन्द कर लेती
बीच उंगलियों से फिर देखूं
गायब छवि विचलित कर देती।
यहां वहां फिर ढूंढती तुझको
कहां गया चितचोर तलाशूं
कभी तलाशती घर के भीतर
घर आंगन छत पर भी तलाशूं।
नदी किनारे ताल तलैया
वन उपवन खलिहान खेत में
भरी दोपहरी या बरसातें
शाम सवेरे रातों में दिखता है।
तारों में तू ही दिखता है
चन्दा में मुखड़ा दिखता है
रात रात भर बातें करती
हाथ बढ़ाऊं तू छिपता है।
सुबह भोर आंगन को बुहारूं
आंगन में तू ही दिखता है
खड़ी किनारे तुझे निहारूं
मां की डांट से डर लगता है।
आंख मिचौली खेलना तेरा
यूं तो मुझको अच्छा लगता है
कल चाहा कुछ बातें होंगी
इन्तजार पर व्यथित करता है।
मां कहती कुछ हुआ असर है
जादू टोना बिटिया पर डर है
वैद्य डाक्टर हार गये सब
तान्त्रिक ओझा अब आता घर है।
आ जाओ तुम भेष बदलकर
मेरी गली में कान्हा सा बनकर
मां बहन सब सखियां देंगे
मैं भी निहारूं राधा सी बनकर।
हो जायें जो चार दो अंखियां
होगा बहुत आभार हो रसिया
बस इतना ही मुझको काफी
मेरे मन मन्दिर के बसिया।
उस दृश्य को हिय में छिपाकर
भीतर के पट सब बन्द कर लूंगी
नैनों पर भी प्रतिबंध लगाकर
नीर बहाना बन्द कर दूंगी।
ऐसा ना हो मेरे आंसू
तुझको कहीं भिगो जायें
सर्दी की ठंडी रातों में
तुझको सर्दी लग जाये?
जब तू होगा घट के भीतर
आंखों को भी बन्द रखूंगी
सखी सहेली देख न पाए
खुद को भी मैं बंद कर लूंगी।
तेरे ख्यालों में जागूं- सोऊंगी
तेरी छवि में खुद को पाऊंगी
दर्पण को भी बिसरा दूंगी
बस तुझमे ही रम जाऊंगी।
अब हया मुझे बहुत आती है
पलकें अक्सर झुक जाती हैं
लब रहते खामोश मगर
कम्पन सबको दिख जाती है।
ख़ामोश लबों के संवादों को
झुके नयन सब कह देते हैं
सखी सहेली राधा कहकर
तुझको मुझमें देखा करती हैं।
जब भी तेरी बात चले
गाल हया से लाल हुये
जियरा धड़के जोर जोर से
मौन सभी विचार हुये।
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