क्रांतिकारी या आतंकवादी
--:भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र"अणु"
समय के साथ चलने वाले लोगों को सफलता मिलती है।जो समय के साथ खुद का सामंजन नहीं कर पाते हैं वे पीछड जाते है।हमरे पीछडेपन का एकमात्र कारण है कि हम समय के साथ चले नहीं छले गये।
मेरे समाज के हर वर्ग के हरेक प्राणी का एक एक निश्चित जीविकोपार्जन का साधन था।सभी अपने धंधे में कुशल थे खुशहाल थे समपन्नता थी।।उस समय तो हमारे समाज में ऐसा वातावरण था कि हमसब कर्म को पुजा मानते थे।कहीं पर किसी भी वृति के प्रति दुष्प्रवृत्ति नहीं थी।किसी प्रकार का वैमनस्य नहीं था।समय के साथ लोग अपने-अपने स्वभाविक कर्मो में प्रगति करते गये।हर समाज के हर वर्ग के अंतर्गत मान बोध था।एक स्वभिमान था।देश,जाति,धर्म,कर्म और अपनी परंपरा के प्रति।
हमारे समाज में जैसे-जैसे विजातीय तत्वों का समावेश हुआ वे हमारे परंपरागत तत्वों के उपर प्रहार करना शुरु किये।कुछ दिक्भ्रमितों को उकसाया और उसे क्रांति का नाम देकर सब छिन्नभिन्न कर दिया।ये जो देश,जाति,वृत्ति के प्रति वैमनस्य है वह सब उसी का देन है।हमें सजग रहकर प्रतिकार करना होगा नहीं तो अभी और दुर्दशा बाकी है।
भारतीय समाज में कहीं पर किसी का भी किसी तरह का शोषण नहीं था।सब परिवार सदृश्य थे।लोग एक दूसरे का मदद करते थे।परस्पर सहयोग का सुयोग था।पुरा संसार अपने परिवार के समान था।सबका दुख-सुख अपना सुख-दुख था।।हम एकजुट थे।हमारा समाज एकजुट था।हम प्रगति के उतंग शिखर पर थे।ज्ञान, कला,विज्ञापन, स्थापत्य आदि पर एकाधिकार था।विधर्मी, विजातीय तत्वों को कुछ भी मौका नहीं मिल रहा था।वे हमारे समाज को,समपन्नता को सहन नहीं कर पा रहे थे।समाज, जाति,उँच,नीच,छुआछूत की कुत्सित भावना फैलाये।कुछ हमारे हीं लोग विभिषण और जयचंद बने।सभी तानाबाना को छिन्न-भिन्न कर दिया गया और उसका सारा आरोप मेरे मेरे मढ दिया गया पेशेवर हत्यारों के माफिक।परिणाम सामने है।
कुछ गलतियां हमारी भी रही होगी मैं मानता हुँ पर उतनी गलती नहीं थी जितना कह दिया गया।वे अपने मकसद में कामयाब हो गये हब बर्वाद हो गये।
ये जो हमारी बर्वादी है उसका एकमात्र कारण है वह आयातित ज्ञान और आचरण है।साम्यवाद, समाजवाद का नारा ले देकर मेरे समाज को आखिर क्या मिला है?हमसब देख,जान,भोग रहे है।परंपरा से जो टुट जाता है वह छुट जाता है।हमारा ईतिहास उसे कभी माफ नहीं करता है।आज कल तो ईतिहास भी गलत पढाया जाता है।जीसका गुणगान होना चाहिये उनको हीं बदनाम किया जा रहा है।विधर्मी,आतताइयों का गुणानुवाद किया जा रहा है।अब तो यह भी समझना मुश्किल है कि चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह आदि क्रांतिकारी थे अथवा आतंकवादी।
और ये सब आयातित ज्ञान के दुष्परिणाम है।----------------------------------------वलिदाद, अरवल(बिहार)
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