इसराइल के प्रधानमंत्री के ओजस्वी भाषण के प्रेरक अंश
डॉ राकेश कुमार आर्य
इसराइल अपनी जिजीविषा के लिए जाना जाता है। इसने अपनी जीवंतता का एक इतिहास बनाया है। 1948 से पहले यहूदियों का कोई देश नहीं था। ये दर-दर की ठोकरें खा रहे थे और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे। जब इस्लाम और ईसाइयत संसार के एकमात्र यहूदी देश को मिटाने पर सदियों से संघर्ष करती रही हो, तब अपने लिए एक स्थान निश्चित करवा लेना और उसे अपना देश बनाकर संसार के शक्तिशाली देश में उसकी गिनती करवाना इसराइल के द्वारा ही संभव है। इसराइल को 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने जो भूभाग रहने के लिए दिया था, उसका 65% भाग रेगिस्तान था। उसे अपने पुरुषार्थ और परिश्रम से इसराइलवासियों ने रेगिस्तान के बीच उसे हराभरा बनाने का कार्य करके दिखाया। मात्र 95 लाख की आबादी का यह देश संसार के लोगों को बता रहा है कि यदि जीने की इच्छा प्रबल है और संघर्ष करने की भावना आपके भीतर है तो आपके अस्तित्व को कोई मिटा नहीं सकता।
बेंजामिन नेतन्याहू इस देश के प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अभी ईरान के साथ हुए इजरायल के संघर्ष में देश का बहुत ही साहस के साथ नेतृत्व किया है। इस समय बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने देशवासियों को जिन ओजपूर्ण शब्दों में संबोधित किया है ,वह किसी भी देश के लोगों के लिए बहुत प्रेरक हो सकते हैं। उन्होंने देश के लोगों को जिस प्रकार वीरता के भावों से भरने का प्रयास किया वह उनके देश के प्रेरक इतिहास का एक प्रेरक उद्बोधन भी कहा जा सकता है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि :-
" 75 साल पहले हमें मरने के लिए यहां लाया गया था। हमारे पास न कोई देश था, न कोई सेना थी। सात देशों ने हमारे विरुद्ध जंग छेड़ दी। हम सिर्फ 65000 थें। हमें बचाने के लिए कोई नहीं था। हम पर हमलें होते रहे, होते रहे। लेबनान, सीरिया, इराक़, जॉर्डन,मिश्र, लीबिया, सऊदी , अरब जैसे कई देशों ने हमारे उपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमें मारना चाहते थे, किंतु हम बच गए।"
इसराइल के प्रधानमंत्री ने अपने देश के लोगों को समझाया कि प्रत्येक पड़ोसी देश ने हमारे देश को समाप्त करने का हरसंभव प्रयास किया, परंतु हमने संघर्ष से मुंह नहीं फेरा और हम निरंतर अपने अस्तित्व के लिए लड़ते रहे। उन्होंने आगे कहा कि :-
" संयुक्त राष्ट्र संघ ने हमें धरती दी, वह धरती जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी। हमने उसको भी अपने खून से सींचा। हमने उसे ही अपना देश माना , क्योंकि हमारे लिए वही सब कुछ था। हम कुछ नहीं भूलें। हम फिर उन से बच गए। हम स्पेन से बच गए। हम हिटलर से बच गए। हम अरब से बच गए। हम सद्दाम हुसैन से बच गए। हम गद्दाफी से बच गए। हम हमास से भी बचेंगे, हम हिज्बुल्लाह से भी बचेंगे और हम ईरान से भी बचेंगे।"
प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने देशवासियों को आशावादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि जब पहले बड़े से बड़ा तूफान हमारे मनोबल को नहीं तोड़ सका तो इस बार का तूफान भी हमें मिटा नहीं पाएगा। हमें अपने इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिए और अपने पूर्वजों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस नए तूफान से भी जूझने की तैयारी करनी चाहिए। अपनी मातृभूमि और धर्मस्थल जेरूसलम के प्रति अपने देश के लोगों को उत्प्रेरित करते हुए इसराइल के प्रधानमंत्री ने कहा कि :-
" हमारे जेरुसलम पर अब तक 52 बार आक्रमण किया गया, 23 बार घेरा गया, 39 बार तोड़ा गया, तीन बार बर्बाद किया गया, 44 बार कब्जा किया गया लेकिन हम अपने जेरुसलम को कभी नहीं भूले वह हमारे हृदय में है,वह हमारे मस्तिष्क में हैं और जब तक हम रहेंगे जेरुसलम हमारी आत्मा में रहेगा। संसार यें याद रखें कि जिन्होंने हमें बर्बाद करना चाहा वह आज स्वयं नहीं है। मिश्र, लेबनान, वेवीलोन, यूनान, सिकंदर, रोमन सब खत्म हो गयें है। हम फिर भी बचे रहे।"
"हमें वे (इस्लाम) खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने हमारे रस्म रिवाज को कब्जाया। उन्होंने हमारे उपदेशों को कब्जाया। उन्होंने हमारी परंपरा को कब्जाया। उन्होंने हमारे पैगंबर को कब्जाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम इब्राहिम कर दिया गया, सोलोमन, सुलेमान हो गया, डेविड, दाऊद बना दिया गया। मोजेज मूसा कर दिया गया। फिर एक दिन उन्होंने कहा - तुम्हारा पैगंबर ( मुहम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार किया। करते भी कैसे ? उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा स्वीकार करो़, कबूल लो। हमने नहीं कबूला। फिर हमें मारा गया। हमारे शहर को कब्जाया गया। हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया। हम क़'त्ल हुए,भगा दिए गए।"
इतिहास की दीर्घकालीन परंपरा को इसराइल के प्रधानमंत्री ने अपने देशवासियों के समक्ष इस प्रकार से खोल कर रख दिया कि उनके भीतर क्रांति के भाव मचलने लगे । वास्तव में इसी प्रकार के संबोधन देशवासियों को आपत्ति काल में एक सक्षम नेतृत्व प्रदान करने में सफल होते हैं। बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने आप को सिद्ध किया कि वह आपातकाल में देश का नेतृत्व करने में पूर्णतया सक्षम हैं।
" मक्का के काबा में हम दो लाख थे, मार दिए गए। हमें दुश्मन बता कर क़'त्ल किया गया। फिर सीरिया में, ओमान में यही हुआ। हम तीन लाख थे मा'र दिए गए इराक़ में हम दो लाख थे, तुर्की में चार लाख हमें मा'रा जाता रहा, मारा जाता रहा। वे हमें मार रहे हैं, मारते जा रहें हैं। हमारे शहर,धन, दौलत, घर,पशु,मान सम्मान सब कुछ कब्जाये़ जाते रहे, फिर भी हम बचे रहे। 1300 सालों में करोड़ों यहूदियों को मारा गया, फिर भी हम बचे रहे। 75 साल पहले वे हम पर थूकते थे, ज़लील करतें थे, मारते थे। हमारी नियति यही थी किंतु हम स्वयं पर, अपने नेतृत्व पर, अपने विश्वास पर टिके रहे हैं।"
इसराइल के प्रधानमंत्री ने यहां न केवल अपने देशवासियों के निरंतर होने वाले उत्पीड़न और उनकी हत्याओं के न रुकने वाले क्रम की ओर संकेत किया है बल्कि देश से बाहर भी संसार के अन्य देशों में जहां-जहां यहूदी रहते हैं, उन पर होने वाले अत्याचारों को भी स्पष्ट किया है । जब संसार की बड़ी आबादी यहूदियों की मुट्ठी भर आबादी को समाप्त करने पर तुली हो , तब मरने और मारने का ही एकमात्र रास्ता रह जाता है। इसी ओर इसराइल के प्रधानमंत्री अपने मजहबी भाइयों को प्रेरित कर रहे हैं।
"आज हमारे पास एक अपना देश है। एक स्वयं की सेना है, एक छोटी अर्थ व्यवस्था है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, फेसबुक जैसी कई संस्थाएं हमने इस दौर में बनाई।आज हमारे चिकित्सक दवा बना रहे हैं, लेखक किताबें लिख रहें हैं। ये सबके लिए है,यह मानवता के कल्याण के लिए है।
हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला, हमारे फल, दवाएं, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए है।हम किसी के दु'श्मन नहीं है, हमने किसी को खत्म करने की क़सम नहीं खाई है। हमें किसी को बर्बाद नहीं करना, हम साजिश भी नहीं करते, हम जीना चाहते हैं सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में।"
अपने उज्जवल भविष्य की ओर संकेत करते हुए उन्होंने अपने देशवासियों का आवाहन किया कि " पिछले हजार सालों से हमें मिटाया गया, खदेड़ा गया, कब्जाया जाता रहा,हम मिटे नहीं,हारे नहीं और न आगे कभी हारेंगे। हम जीतेंगे, हम जीत कर रहेंगे। हम 3000 सालों से यरुसलम में ही थे। आज़ हम अपने पहले देश इजरायल में है। यह हमारा ही था, हमारा ही है और हमारा ही रहेगा। यरुसलम हमसे है और हम यरुसलम से है।"
पता नहीं हम हिंदुओं को अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बुद्धि कब आएगी ?
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
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