"श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा और पुरी मंदिर का इतिहास"

डॉ राकेश दत्त मिश्र
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में कुछ पर्व ऐसे हैं जो केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और वैश्विक श्रद्धा का प्रतीक बन गए हैं। पुरी की श्री जगन्नाथ रथ यात्रा ऐसा ही एक पर्व है, जो हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकलती है और जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का उत्सव है, बल्कि भारतीय स्थापत्य, लोक परंपरा और भक्ति साहित्य का जीवंत उदाहरण भी है।
हमने इस आलेख में बताने का प्रयास किया है कि पुरी का जगन्नाथ मंदिर कब बना, रथ यात्रा की शुरुआत कब हुई, और यह यात्रा हमारे धर्म-संस्कारों में क्या महत्व रखती है।
🛕 पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर का निर्माण इतिहास
1. स्थापना और निर्माता
- पुरी (ओडिशा) स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों (चार धाम) में से एक है।
- इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में गंग वंश के प्रतापी शासक अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था।
- यह निर्माण लगभग 1078 ई. से 1147 ई. के बीच पूर्ण हुआ।
2. स्थापत्य शैली
- यह मंदिर कलिंग स्थापत्य शैली का श्रेष्ठ उदाहरण है।
- इसका मुख्य शिखर लगभग 65 मीटर ऊँचा है, और यह ओडिशा के समुद्र तट से कुछ ही दूरी पर स्थित है।
- इसमें मुख्य रूप से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
3. अनूठी विशेषताएँ
- मंदिर की ध्वजा सदैव वायु प्रवाह के विपरीत दिशा में लहराती है।
- मुख्य शिखर पर लगा सुदर्शन चक्र मंदिर के किसी भी कोने से देखने पर सदैव सामने प्रतीत होता है।
- रसोईघर (महाप्रसाद निर्माण) विश्व का सबसे बड़ा माना जाता है, जहाँ लकड़ी की आग पर प्रतिदिन लाखों लोगों के लिए भोजन बनता है।
🚩 श्री जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास और परंपरा
1. शास्त्रों में उल्लेख
- रथ यात्रा का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और ब्रह्म पुराण जैसे प्रमुख ग्रंथों में मिलता है।
- यह यात्रा प्रतीक है उस समय का जब भगवान श्रीकृष्ण अपने ननिहाल (ब्रज) जाने की इच्छा करते हैं।
- रथ यात्रा को "गुंडिचा यात्रा" भी कहा जाता है क्योंकि इसमें भगवान गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) तक जाते हैं।
2. शुरुआत कब हुई?
- ऐतिहासिक रूप से रथ यात्रा की संगठित परंपरा 12वीं शताब्दी में मंदिर निर्माण के पश्चात शुरू हुई।
- किंवदंती है कि गंग वंश के राजा चोडगंग देव ने इस यात्रा का प्रारंभ कराया, और उनके उत्तराधिकारी राजा अनंग भीम देव ने इसे विस्तार दिया।
3. रथ यात्रा की प्रक्रिया
- हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथ यात्रा आरंभ होती है।
- तीन भव्य रथ बनाए जाते हैं:
- नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ के लिए)
- तालध्वज (बलभद्र के लिए)
- दर्पदलन (सुभद्रा के लिए)
रथों को हज़ारों श्रद्धालु खींचते हैं, जिसे ‘रथ खींचना’ पुण्य कार्य माना जाता है।
भगवान गुंडिचा मंदिर में 7 दिन रहते हैं और फिर बहुदा यात्रा के माध्यम से वापस आते हैं।
🌍 विश्व में रथ यात्रा की ख्याति
यह यात्रा अब केवल पुरी तक सीमित नहीं है।
भारत के अन्य भागों जैसे अहमदाबाद, कोलकाता, और मुंबई में भी रथ यात्रा भव्य रूप से मनाई जाती है।
विदेशों में जैसे यू.एस.ए, यू.के, रूस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में इस्कॉन के माध्यम से रथ यात्राएँ निकाली जाती हैं।
🕉️ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
समरसता का प्रतीक:
रथ यात्रा में राजा से लेकर आम नागरिक तक समान रूप से भाग लेते हैं। पुरी के गजपति राजा स्वयं रथ की झाड़ू लगाकर सेवा देते हैं – यह विनम्रता और सेवा का आदर्श है।
भक्ति और त्याग:
भगवान का मंदिर से बाहर आकर जनता से मिलना यह दर्शाता है कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, जन-जन में हैं।
लोक परंपराओं का उत्सव:
यात्रा के दौरान कीर्तन, ओडिसी नृत्य, लोकगीत, भजन आदि के आयोजन होते हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सजीव रखते हैं।
🔍 कुछ रोचक तथ्य
- मूर्तियाँ लकड़ी की होती हैं, जिन्हें हर 12-19 वर्षों में नवकलेवर (पुनर्निर्माण) के अंतर्गत बदला जाता है।
- मूर्तियों में रहस्यपूर्ण ऊर्जा होने की मान्यता है – इन्हें देखने मात्र से कई लोगों को आध्यात्मिक अनुभव होते हैं।
रथ यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की मशीन या इंजन से कार्य नहीं लिया जाता, सब कुछ मानवीय श्रम से होता है।
पुरी की श्री जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, शास्त्र, भक्ति और लोक जीवन की अद्वितीय संगम यात्रा है। यह हमें सिखाती है कि धर्म केवल आडंबर नहीं, बल्कि सेवा, समरसता और त्याग का नाम है। जगन्नाथ जी स्वयं जब मंदिर से बाहर निकलते हैं, तो यह संदेश देते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए केवल मंदिर नहीं, मन को निर्मल बनाना पड़ता है।
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