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बनगड़ी

बनगड़ी

(धान के पहिला रोपनी )
जय प्रकाश कुंवर
अदरा बरिसल, धान खेत में लेव लागल,
होखे जाता बनगड़ी।
एने घरे मलकिनी बनावे जात बाड़ी,
दाल भात कढ़ी।।
अदरा के बरखा बरिसल,
मन निहाल भ‌इल।
गाँव के किसान लोग के,
भाग खुल ग‌इल।।
इंदरदेव का किरपा से,
एह साल अच्छा फसल होई।
गाँव का किसान लोग के,
आशा पूरा होई।।
बेड़रिया बिचड़ा उखाड़त बाड़े,
रोपनिहार धान रोपत बाड़ी।
कांदो लेव में छपकत बाड़ी,
खूंटले बाड़ी साड़ी।।
रोपनी से जैसे ही, हरवाह, बेड़रिया, रोपनिहार,
सब फुरसत प‌इहें।
आपन आपन छीपा लेके,
मालिक का घरे पहुँच ज‌इहें।।
मलकिनी परोस परोस,
सबका के खिअइहें।
छीपा में भर भर के सब झुरी, पकौड़ी,
दाल, भात, कढ़ी, अपना घरे ले ज‌इहें।।
मालिक आ मजदूर सब,
एह दिन खुब खुशी मना‌ई।
अदरा के बरखा बरिसला
आउर बनगड़ी भ‌इला पर,
सब केहू मिलकर,
इंदरदेव के दिही बधाई।।

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