तू बन जा मेरी राधा,मैं तेरा मोहन बन जाऊं
रग रग मृदुलता स्पंदन,अंतःकरण माधुर्य सराबोर ।
पुलकित भाव तरंगिनी ,
तृषा तृप्ति आनंद भोर ।
हाव भाव मस्त मलंग,
अंतर अनंत निखार पाऊं।
तू बन जा मेरी राधा,मैं तेरा मोहन बन जाऊं ।।
प्रति पल दर्शन अभिलाष,
स्मृति पटल मनोरम छवि ।
रूप श्रृंगार अति मनहर,
आकर्षण अठखेलियां नवि ।
यौवन उभार प्रणय जन्य,
नयनन स्नेहिल चित्र बनाऊं ।
तू बन जा मेरी राधा,मैं तेरा मोहन बन जाऊं ।।
परिध क्षेत्र हर्ष उल्लास,
स्वप्न माला जीवंत रूप ।
चाल ढाल उत्साह उमंगी ,
सौंदर्य बिंदु अर्णव प्रतिरूप ।
हिय प्रिय मौन अभिव्यक्ति,
दर्श मुस्कान नित्य प्रीति जगाऊं ।
तू बन जा मेरी राधा,मैं तेरा मोहन बन जाऊं ।।
ह्रदय सरोवर नेह तरंग,
अनुभूति पुनीत पावन ।
स्वर सुरभि दिव्य झंकार,
उर चंचल चंद्रिका बिछावन ।
निशि दिन रमणीक प्रभा,
सदा मिलन सेज सजाऊं ।
तू बन जा मेरी राधा,मैं तेरा मोहन बन जाऊं ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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