सच है मगर सोचना विचारना होगा
हमने किसका साथ निभाया,
बिन स्वार्थ कब आगे आया।
परहित मे खुद की नींद उड़ाई,
किसकी खातिर नीर बहाया?
कब गैरों के गम में रोये,
खिला किसीको भूखे सोये?
फटी बिवाई निज पैरों में,
तब ही जाना दर्द क्या होये।
काम किसी के आना सीखें,
अहसासों को जानना सीखें।
चोट लगे जब किसी एक को,
हम सब अश्रु बहाना सीखें।
अ कीर्ति वर्द्धन
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