देवी की आंचलभराई का क्या महत्त्व है ?
१. देवी की आंचलभराई का क्या महत्त्व है ?
देवी को साडी एवं चोली वस्त्र अर्पण कर, अर्थात देवी की आंचलभराई कर, देवीपूजन को संपन्न करना होता है । देवी को साडी एवं चोली वस्त्र अर्पित करना, अर्थात अपनी आध्यात्मिक उन्नति अथवा कल्याण हेतु देवी के निर्गुण तत्त्व को सगुण में आनेका आवाहन करना । सर्व पंचोपचार पूजाविधियां ईश्वर के निर्गुण रूपसे संबंधित हैं । देवी की आंचलभराई करते समय, प्रत्यक्ष कार्य हेतु देवी से प्रार्थना की जाती है । इससे पूर्व पंचोपचार विधि से कार्यरत देवी के निर्गुण तत्त्व को, साडी एवं चोली वस्त्र के माध्यम से, मूर्त सगुण रूप में साकार होने हेतु सहायता मिलती है ।
देवी की आंचलभराई अपनी-अपनी कुलपरंपरा के अनुसार अथवा प्रांतानुसार भिन्न प्रकार से होती है । उत्तर भारत में देवी मां को लाल चुनरी चढाते हैं । सामान्यतः देवी की आंचलभराई करते समय देवी को यथाशक्ति साडी एवं चोली-वस्त्र अथवा केवल चोली-वस्त्र अर्पण करते हैं ।
२. देवी की आंचलभराई की उचित पद्धति
अ. उत्तर भारत में देवी को लाल चुन्नी चढाते हैं । लाल रंग शक्तितत्त्व सर्वाधिक आकृष्ट करता है । भारत के अधिकांश राज्यों में स्त्रियां चोली के वस्त्र एवं नारियल से देवी का आंचल भरती हैं ।
आ. ‘देवी को सूती अथवा रेशमी साडी अर्पण करें; क्योंकि इन धागों में देवता से प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें ग्रहण करने एवं संजोए रखने की क्षमता अधिक होती है ।
इ. एक थाली में साडी रखकर उसपर चोली वस्त्र, नारियल (चोटी देवी की ओर कर) तथा थोडे से चावल रखें । तत्पश्चात् थाली में रखी सर्व वस्तुएं अपने हाथ की अंजुलि में लेकर, हाथ अपनी छाती के समक्ष लाकर देवी के सामने खडे हों ।
ई. चैतन्य मिलने एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु देवी से भावपूर्वक प्रार्थना करें । इससे सगुण देवीतत्त्व के जाग्रत होने में सहायता मिलती है ।
उ. आंचलभराई की सामग्री को देवी के चरणों में अर्पित करने के उपरांत उसपर चावल चढाएं ।
ऊ. देवी के चरणों में अर्पित वस्त्र को संभवतः धारण करें तथा नारियल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें ।
५. छह गज की साडी की अपेक्षा देवी को नौ गज की साडी अर्पित करना अधिक उचित क्यों होता है ?
देवता के प्रति भाव रखनेवाला एवं गुरुकृपायोगानुसार सम साधना (टिप्पणी १) करनेवाला पूजक अपने भावानुसार देवी को किसी भी प्रकार की साडी अर्पित करे, तो भी चलता है । उसके भाव से अपेक्षित लाभ होता है ही; परंतु प्राथमिक चरण का साधक अथवा कर्मकांडानुसार साधना करनेवालोंद्वारा प्रत्येक कृत्य नियमानुसार होना महत्त्वपूर्ण है । इसलिए देवी को छह गज की अपेक्षा, नौ गज की साडी अर्पित करना उचित है । यह अर्पित करना पूजक का आवश्यकतानुसार देवी द्वारा नौ रूपों के माध्यम से कार्य करने का प्रतीक है । साडी के नौ स्तर देवी के कार्य करनेवाले नौ रूप दर्शाते हैं । नौ गज की साडी अर्पित करना, अर्थात मूल निर्गुण शक्ति (श्री दुर्गादेवी)को, जिस में देवीतत्त्व (शक्ति)के सर्व रूप समाए हुए हैं, उनके नौ रूपोंसहित प्रगट होकर कार्य हेतु आवाहन । ‘९’ का आंकडा श्री दुर्गादेवी के कार्य करनेवाले प्रमुख नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करता है ।’ संदर्भ – सनातनका ग्रंथ, ‘देवीपूजनसे संबंधित कृत्योंका शास्त्र‘ एवं अन्य ग्रंथ
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