नवरात्र व्रत का इतिहास, महत्व और विज्ञान
सर्वमंगल मांगल्ये शिवेसर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।
अर्थ : सभी मंगल कारकों की मंगल रुप वाली;
स्वयं कल्याण
शिव रुप वाली;
धर्म,
अर्थ,
काम और मोक्ष
ये चार पुरुषार्थ प्राप्त करवाकर देने वाली; समर्पण के योग्य;
त्रिनेत्रों
वाली ऐसी नारायणी देवी,
मैं आपको
नमस्कार करता हूं ।
इस एक श्लोक से श्री दुर्गा देवी के
अतुलनीय गुणों का पता चलता है। आदि शक्ति श्री दुर्गा देवी जीवन के लिए परिपूर्ण
सभी का प्रतीक हैं । श्री दुर्गादेवी को समस्त लोकों की माता कहा जाता है। संसार
की माता होने के नाते वह हम सबकी माता हैं और बालकों के पुकारने से दौड़ी चली आती
है ।
नवरात्रि श्री दुर्गा देवी का उत्सव
है जिन्होंने महिषासुर के विनाश के लिए अवतार लिया था। नवरात्रि में घट स्थापना
करते हैं । नौ दिनों तक नवरात्रोत्सव की पूजा करना श्री दुर्गा देवी के अविरल नंद
दीप के माध्यम से घट रूपी ब्रह्मांड में अवतरित गौरवशाली आदि शक्ति अर्थात नंद दीप
की पूजा करना है। इस वर्ष नवरात्रि पर्व 7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है।
नवरात्रि देवी का व्रत है और यह कुलाचार के रूप में भी मनाया जाता है। इस व्रत में
नौ दिन व्रतस्थ रह कर देवी की श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है। आज यह कई राज्यों
में त्योहार बन गया है। इस पर्व में हिन्दुओं को देवत्व का लाभ मिलता है;
यधपि
नवरात्रि पर्व के विकृत स्वरूप के कारण देवत्व का लाभ उससे कोसों दूर है;
लेकिन इसकी
पवित्रता भी कम हो गई है। इस पर्व के अनुपयुक्त रूपों को रोककर इसकी पवित्रता को
बनाए रखना भी समय के अनुसार धर्म पालन है।
आइए जानते हैं सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में नवरात्र व्रत के पीछे
का इतिहास,
इस व्रत का
महत्व और इसे मनाने के पीछे का विज्ञान।
तिथि: अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक ।
इतिहास : राम के हाथों रावण को मारने के
उद्देश्य से,
नारद ने राम
से नवरात्रि पर व्रत करने के लिए कहा। इस व्रत को पूरा करने के उपरांत राम ने लंका
पर आक्रमण किया और अंत में रावण का वध किया। देवी ने प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिनों
तक महिषासुर से युद्ध किया और नवमी की रात महिषासुर का वध किया। तभी से उन्हें
महिषासुरमर्दिनी कहा जाने लगा ।
महत्व - जब भी संसार में तामसी,
राक्षसी और
क्रूर लोग प्रबल होते हैं और सात्विक और धर्मपरायण सज्जनों पर अत्याचार करते हैं,
तो देवी धर्म
की स्थापना के लिए बार-बार अवतार लेती हैं। नवरात्रि में
देवी तत्व सामान्य से 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है।
देवीतत्व का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए नवरात्रि में 'श्री दुर्गादेव्यै नमः'
यह जप अधिक
से अधिक करना चाहिए ।
उपवास की विधि - नवरात्र व्रत, कई परिवारों में कुलाचार का रूप है।
इस व्रत की शुरुआत अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होती है।
घर में किसी पवित्र स्थान पर एक
वेदी स्थापित करनी चाहिए और उस पर सिंह पर बैठी हुई अष्टभुजा देवी और नवार्ण यंत्र
स्थापित करना चाहिए। यंत्र के बगल में एक घट स्थापित करके विधि विधान से उनकी और
देवी की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्र पर्व में कुलाचार के अनुसार
ही घट स्थापना और माला चढाना चाहिए। खेत से मिट्टी लाकर दो उंगली जितनी मोटी चौकोर
परत बनाकर उसमें पांच या सात प्रकार के अनाज डालें। जौ,
गेहूं,
तिल,
हरे चने,
राल,
सेव और चना
सात अनाज हैं।
एक मिट्टी या तांबे का कलश लें और
उसमें पानी,
गंध,
फूल,
दूब,
अक्षत,
सुपारी,
पंचपल्लव,
पंचरत्न या
सिक्का आदि डालें।
यदि सप्त अनाज और कलश (वरुण) की स्थापना का वैदिक मंत्र नहीं आता हो तो पुराणोक्त मंत्र
कहना चाहिए। यदि ये भी नहीं आता, तो वस्तु का नाम लेकर 'समर्पयामी'
कह कर नाम
मंत्र कहे । माला इस प्रकार बांधे की वो कलश तक पहुंच जाय ।
नौ दिनों तक प्रतिदिन कुंवारी कन्या
की पूजा करें और उसे भोजन कराएं। सुवासिनी का अर्थ है प्रकट शक्ति,
जबकि
कुमारिका का अर्थ है अप्रकट शक्ति। प्रकट शक्ति का थोड़ा अपव्यय होने के कारण
कुंवारी में कुल शक्ति सुवासिनी की तुलना में अधिक होती है।
अखंड दीप प्रज्ज्वलन,
उस देवता का
महात्म्य पठन (चंडीपाठ),
सप्तशती पाठ,
देवी भागवत,
ब्रह्माण्ड
पुराण में ललितोपाख्यान श्रवण, ललिता-पूजन,
सरस्वती पूजन,
उपवास,
जागरण आदि
करके अपनी क्षमता और शक्ति के अनुसार नवरात्र पर्व मनाना चाहिए।
यदि उपासक उपवास कर रहा हो तो भी
देवता को हमेशा की तरह भोजन अर्पित करना चाहिए।
इस अवधि के दौरान,
अच्छे
शिष्टाचार के एक भाग के रूप में, व्यक्ति को विभिन्न चीजों का पालन
करना चाहिए जैसे कि शेविंग न करना (दाढ़ी के बाल और सिर पर बाल न काटना),
सख्त
ब्रह्मचर्य,
बिस्तर पर न
सोना,
सीमा पार न
करना,
जूते का
उपयोग न करना।
नवरात्रों की संख्या पर बल देते हुए
कुछ लोग नवरात्र के अंतिम दिन भी नवरात्र रखते हैं; लेकिन शास्त्रों के अनुसार अंतिम
दिन नवरात्र विसर्जन होना चाहिए। यदि उस
दिन समाराधना (भोजन प्रसाद) के बाद समय शेष हो तो उसी दिन सभी देवताओं अभिषेक और
षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। यदि यह संभव न हो तो अगले दिन सभी देवताओं का अभिषेक
करना चाहिए।
देवी की मूर्ति के विसर्जन के समय,
बोए गए अनाज
के पौधे देवी को अर्पित करते हैं। महिलाएं पौधों को अपने सिर पर 'शाकंभरी देवी'
के रूप धारण
कर के उन्हें विसर्जन के लिए ले जाती हैं।
नवरात्रि की स्थापना के समय देवताओं
को स्वच्छ'
करना चाहिए।
नींबू,
राख आदि का
प्रयोग करना चाहिए। रंगोली या डिश वाशिंग पाउडर का प्रयोग न करें।
अंत में,
स्थापित घट
और देवी का विसर्जन करें ।
नवरात्र या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में दीपक को अक्षुण्ण
रखते हुए,
जो कि
अनुष्ठान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यदि हवा,
कम तेल या
अन्य कारण से बुझ जाता है,
तो कारणों को
दूर करके दीपक को फिर से जलाना चाहिए और एक सौ आठ या एक हजार आठ बार प्रायश्चित के
रूप में जप करें।
देवी से इस प्रकार प्रार्थना करते हैं: हे देवी, हम शक्तिहीन हो गए हैं,
हम अनंत भोग
भोगकर माया में लिप्त हो गए हैं। मां तू ही है जो हमें बल देती है। आपकी शक्ति से
हम आसुरी प्रवृत्तियों का नाश कर सके ।
गागर फूंकना : अष्टमी के
दिन महिलाएं श्री महालक्ष्मी देवी की पूजा करती हैं और गागर का फूंक मारती हैं।
गुजरात में,
कई छेद वाले
मिट्टी के बर्तन में रखे दीपक को मातृत्व के प्रतीक के रूप में नवरात्रि पर पूजा
जाता है। नारी की रचनात्मकता के प्रतीक के रूप में नौ दिनों तक पूजे जाने वाले 'दीपगर्भ'
में 'दीप' शब्द लुप्त हो गया है और 'गर्भ-गर्भो-गरबो'
या 'गरबा' शब्द प्रचलन में आ गया है।
भावार्थ : असुर शब्द की
व्युत्पत्ति है - 'असुषु रमन्ते इति असुरः। अर्थात
प्राण में,
भोग में रमे
होते हैं वो असुर है । ऐसे महिषासुर का आज कम , अधिक प्रमाण में हर इंसान के हृदय
में वास है और उसने मनुष्य की आंतरिक दैवी वृत्तियों पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया
है। इस महिषासुर की माया को पहचानने और उसके आसुरी चंगुल से छुटकारा पाने के लिए
शक्ति की आराधना की आवश्यकता है। इसके लिए नवरात्रि में नौ दिनों में शक्ति की
पूजा करनी चाहिए। दशमी को विजय का उत्सव मनाना चाहिए। इसे दशहरा कहते हैं।
कदाचार पर रोक लगाकर रखें नवरात्रि पर्व की पवित्रता - पूर्व में 'गरबा' नृत्य के दौरान केवल देवी,
कृष्णलीला और
संतों द्वारा रचित गीत गाए जाते थे। आज भगवान की यह सामूहिक नृत्य पूजा विकृत हो
गई है। फिल्मों में गानों की धुन पर अश्लील इशारों से गरबा खेला जाता है। महिलाओं
के यौन उत्पीड़न की घटनाएं गरबा के कारण होती हैं। पूजा स्थलों पर तंबाकू,
शराब,
ध्वनि
प्रदूषण आदि भी होते हैं। यह कदाचार धर्म और संस्कृति का नुकसान है। इन कदाचारों
को रोकना समय के साथ एक आवश्यक धर्म पालन ही है।
(हिन्दू धर्म में नवरात्र व्रत और
त्योहारों,
धार्मिक
त्योहारों और व्रतों के बारे में अधिक जानने के लिए, सनातन संस्था का ग्रंथ 'त्यौहार,
धार्मिक
उत्सव और व्रत'
को अवश्य
पढ़ें ! ग्रंथ को ऑनलाइन खरीदने के लिए,
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