तेरा इतिहास रहा है
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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हे जगत जननी-
अब रहती कहाँ हो?
पहले सर्वत्र थी-
अब न वहाँ न यहाँ हो।।
पहले सुनकर पुकार;
करती थी प्रतिकार,
भक्तों को अभय करती-
दुष्टों का कर संहार,
समय चाहे जो रहा है।।
लिए हाथ में खंग-खप्पर-
करती थी मुकाबला डटकर,
आज के समय में क्या हुआ-
जो कांप रही हो थर-थर,
याद कर उसे जो पूर्व रहा है।।
महिषासुर,चंड-मुंड,रक्तबीज-
बना हुआ था भू-भार,
थे देव भयभीत देख विपरीत-
देने को अभय ली नव अवतार
पूज संसार चरण गहा है।।
हे मातेश्वरी
एकबार फिर आ जाओ,
मानवता के दुश्मन को-
नया पाठ पढाओ,
जैसा तेरा इतिहास रहा है।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)
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