कर गई आज फिर से सजल चाँदनी
बिन तुम्हारे न होती गज़ल चाँदनी
सच कहूं तेरा कोई न हल चाँदनी
कब से तन्हाई गुमसुम है रात को
कर गई आज फिर से सजल चाँदनी
खिलखिलाकर के हसता था घर जोकभी
अब तो करता न कोई पहल चाँदनी
बस गई है सितारों संग आकाश में
कह रही है छिटक कर टहल चाँदनी
नित सुबह-शाम इंतजार करता रहा
चुपके-चुपके गई तुम बदल चाँदनी
दिल से जिसको सजाया संवारा गया
छोड़ करके गई है महल चाँदनी
जय नहीं भूला दिन है पुराने अभी
मन में खिलते सपन के कमल चाँदनी
*
~जयराम जय
पर्णिका,बी -11/1,कृष्ण विहार,
आवास विकास,कल्याणपुर,
कानपुर-208017 (उ०प्र०)
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