आज की डायरी

सुबह उठने का समय तो निर्धारित हो नहीं पाया था । फिर भी 4:00 बजे भोर का अलार्म लगा कर सोया था । नींद गहरी आ गई थी । अलार्म कब बजा , पता नहीं ।वह चिल्ला -चिल्ला कर शांत हो गया होगा । फिर 5:00 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया ।नींद टूटी परंतु मन ने मना कर दिया -अभी रात्रि में कोई दरवाजा खटखटावे तो बिना समझे-बुझे नहीं खोलना चाहिए । बुद्धि ने स्वीकार कर लिया और फिर पलंग की पीठ पर जाते ही निद्रा महारानी ने बड़ी कृपा की ।उन्होने अपने आगोश में लेकर प्यार से माथा थपथपाया । जिस आनन्द की अनुभूति हुई वह "नहीं रसना परि जाए बखाना"। कसमसाते हए संकल्प की कसम खा कर उठा । 8:00 बज कर 39 मिनट हुए थे । खैर नौ तो नहीं न बजे थे । समय पर काम करने का आनंद ही कुछ और होता है ।न मन में कोई भय न चिंता ।अजातशत्रु होने का यह एक महामंत्र है ।सो नौ बजे के पूर्व उठ समय पर पर्यंग- त्याग का तप -व्रत-श्रुति फल प्राप्ति का श्रीगणेश किया ।उठा ही था कि एक परम प्रिय मित्र का फोन आ गया ,उठाया ,बातें हुई । उन्होंने मेरा समाचार भी नहीं लिया ,सिर्फ आदेश फरमाया -प्रेमी जी ! समझे नऽ ! मेरे एक समझी जी हैं ,समझे नऽ ।वे लड़के के ससुर भी हें,समझे नऽ ।बड़े अच्छे हैं, समझे नऽ ।बरात का स्वागत उन्होने दिल खोल कर किया था-समझे नऽ । त अभी कुछ संकट आ गया है -समझे नऽ ।उनको हार्ट अटैक हो गया है -समझे नऽ ।हार्ट में दर्द हो रहा है ।आप तो भुक्तभोगी हैं ,इसलिए मैं आपके भुक्तभोघी अनुभव का लाभ उठाना चाहता हूँ -सझे नऽ ।
मैंने भी तो समाज सेवा का ठेका ले रखा था । इतना अच्छा सौभाग्य को हाथ से ससरने नहीं देना चाहता था ।बोला,"समझ गया। तत्काल तो उन्हें दवा खिलाइए और फिर मैं डॉक्टर ए बी सिह से बात कर आपको बताता हूँ "।इस तरह की सेवा का अवसर बहुत ही कम मिलता है ।गोस्वामी जी ने समाज को एक मंत्र की घुट्टी पिलाई है- "परहित सरिस धर्म नहीं भाई"।। मैं तो ठहरा परम वैष्णव। इसी परहित महामंत्र से स्रावित अमृत का पान कर हमने राष्ट्रसेवा का खिताव जीता है ।यही तो हमारी पूजा है -
पर हित बस जिनके मन माहीं ।
तिन कँह जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥
बस इसी महामंत्र के आधार पर हमने लाखों की सेवा यानी परहिताई की है ।
सो मैंने डॉक्टर ए बी सिंह को फोन लगाया ।उन्होंने फोन नहीं उठाया ।मेरा बारहवाँ प्रयास भी निष्फल गया । थोड़ी चिंता हुई ,पर मैं तो ठहरा ज्ञानी । चिंता से क्या फायदा ? कर्म करना चाहिए ।गीता में तो भगवान श्री कृष्ण ने कर्म पर ही जोर दिया है -कर्मण्येऽवाधिकारस्ते ।यानी रास्ता चलते समय भी कर्म करते रहना चाहिए । बात बड़ी ही सरल है । रास्ते पर पड़े कांटे को ,पत्थरों को हटा देना चाहिए । यही तो है रास्ते का कर्म और यही है गीता का धर्म और गीता का मर्म । यही सोच कर बाहर जाने का वस्त्र पहना ,गाड़ी की चाबी खोजने लगे ,श्रीमती जी ने टोका -सुबह-सुबह गाड़ी की चाबी क्यों खोज रहे हैं ?। सवा नौ हो गए हैं ,न फ्रेस हुए न चाय पानी पी ,अपनी हॉर्ट वाली दवा भी तो नहीं ली है । इतना सुबह-सुबह कहां निकल रहे हैं?"
मैं क्या जवाब दूँ ? कभी झूठ बोला नहीं ,सदा सत्य बोलने का संकल्प तभी से लिया था जब पढ़ा था- सत्यमेव जयते ।सत्य वहाँ ले जाता है जहाँ मेवा के पेड़ हैं । इस लोभ का संवरण तो कर नहीं सकता था । तो सत्य बोला - हमारे मित्र नारायण साहब बीमार हो गए हैं, उन्हें ---- बोल ही रहा था कि श्रीमती जी ने अपनी आवाज में अणु बम का पलीता बांधकर दागा - "बताइए तो जरा ! अपने बीमार हैं ।रातें कराह रहे थे । इस समय चले परमार्थ करने ! अभी कोरोना का लॉक डाउन है ,कहां जाइएगा ,किसके पास ? चुपचाप शांत होइए ,नहाइए-धोइए ,नास्ता -चाय कीजिए "।
मेरी तो हवा ही निकल गई । करता भी क्या ? बात नहीं मानने पर धर्म की हानि हो जाती । गोस्वामी जी ने पहले ही चेताया है -
मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना ।
नारि सिखावन करसी न काना ॥
सौ बात की एक बात -बस सीधे- सीधे मान ली । आज्ञाकारी होने का अर्थ भी यही है । हार -पार कर बात मानना और उसके लिए गुहा-गिंजन करना अच्छी बात थोड़े है । इसीलिए आज की घटना को देखकर ही गोस्वामी जी ने लिखा होगा-
ससुरारी पियारी भई जब ते ।रिपु रूप कुटुंब भये तब ते॥
जब ससुर की अरि (बेटी)हमारी प्यारी हो जाए तो दुश्मन के समान व्यवहार करने वाले भी कुटुंब बन जाते हैं । ससुर अपनी बेटी को युवावस्था में ही घर से विदा कर देते हैं । यहां तक की उसे कुल देवी -देवता की पूजा के अधिकार से भी बंचित होना पड़ता है और उसे दिए गए सामानों का भी उपयोग नहीं
करते ।अब चमत्कार तो बस श्रीमती जी में ही है ,यही सोच कर बात मान ली । स्थान --ध्यान -जलपान कर कसम -क्रिया खिलाकर फिर ए बी सिहं के यहां निकल ही गया । मेरे भगीरथ प्रयास निष्फल गए । डॉक्टर साहब ने मुझसे मुलाकात नहीं की ।
मैं ने थक -थकाकर दूसरे डॉक्टर बी ए प्रसाद जी का रुख किया । उनके यहां गया तो मुझे अपने कंपाउंड के निदाघ-दाघ में बैठा कर उन्होंने अपने कंपाउंड के अधिपति कंपाउंडर के हाथों प्रतीक्षा का गरमा-गरम आसव दो बूंद -चार बूंद और फिर पूरा ग्लास पिलाया । दोपहर के बाद दिन की उलटी गिनती शुरु हो गई। एक बज गया । बाद में तानसेन के कल्की अवतारी महापुरुष श्रीमान दूत के द्वारा पूछा गया कि किस लिए मिलना चाहते हैं। उस गाना से खेलते दूत को मैंने सारी बात बताई । उत्तर आया -ठीक है ,व्हाट्सएप पर लिखकर अपना लक्षण भेज दें ।
कंपाउंडर ने जोर से कहा," सर यह आपके कौन हैं?"
मैंने बताया -"मेरे प्रिय ! ए मेरे प्रिय मित्र के समझी हैं "
"हां सर ,डॉक्टर साहब ने फीस के लिए कहा है ।"
"फीस? कितना है ? "
"फीस तो पान सौ ही है सर, वाकि इधर कोरोना के कारण मात्र एक हजार लेते हैं "
मैं तो अवाक रह गया । ये दोनों डॉक्टर मेरे अच्छे मित्रों में से आते हैं । पहले समय-समय पर इन्हें रोगी देकर अच्छी कमाई भी हमने करवाई है ।दलाली का अधेला भी कभी नसीब नहीं हुआ। आज स्वयं मैं आया हूँ तो फीस मांग रहे हैं ।नबज देखना तो दूर ,रोगी के खबरी की भी आबाज नहीं सुना ,और फीस एक हजार ।बाप रे ! अगर मित्र नहीं होते तो बस आज ------।
प्रतिष्ठा की बात थी । सो मैंने एक हजार देकर चलता बना । सीधा घर आ गया । मित्र का फोन आया -"कुछ हुआ?" मैंने उत्तर दिया -हाँ ! डॉक्टर बी ए प्रसाद जी से बात बनी है ।उन्होने व्हाट्सएप पर पूरा मैसेज भेजने को कहा है ,मैं उनका व्हाट्सएप नंबर भेज रहा हूँ ।इस व्हाट्सएप पर --------।"
अरे मित्र ! उनकी तो इकोग्राफी भी हो गई है और इन ऐंजियोग्राफी भी । पनचानवे परसेंट ब्लॉक है । मैं तो ऑपरेशन के लिए आपसे पूछा था –कहाँ करवाएं ? "
मन तो झुंझलाया,पर करता क्या ।समाज सेवा का ठीका ले रखा था ।बड़बड़ाया " वाह मित्र! दिन भर परेशान रहे और मुख्य बात बताई ही नहीं थी । चलिए अभी बताता हूँ । "
फिर उन्होंने कहा-"ऐसा है कि मैं उनका नंबर आपके पास भेज देता हूँ, आप स्वयं उनसे बात कर लें । बहुत सारे काम हैं मेरे पास ।बहुत सारे काम है । मेरा बहुत समय इसमें बर्बाद होता है आप दोनों ही बात कर ले" ।
मैं इधर-उधर दिल्ली -अहमदाबाद फोन करता रहा और मित्र का समय बचाता रहा । घर में डाँट पड़ी ,छोटा सा नाती रूस गया -"यह कोई बात हुई ! नहीं समय से खाना खाए, नहीं हम लोगों के साथ बात किए ,दिन भर फोन फोन -फोन- फोन ।"तीन बज गए थे ।खाना खाया ,चादर बिछाई ,सोने का प्रोग्राम बनाया ,काफी थक गया था , लेट गया। फोन को दूर कर दिया था ताकि निश्चिंत होकर सो सकूँ । आँख लगी ही थी कि फोन की घंटी गरजने लगी । कई राउंड घंटी बजी ।" लगता है कोई बहुत आवश्यक फोन है । अच्छा इस बार उठा लेता हूं "सोच कर उठा और फोन उठाया । एक परम आत्मीय बोलने लगे -
"क्या साहब !आप तो विचित्र आदमी हैं । किसी की सहायता नहीं करनी हो तो नहीं करें ,परंतु किसी की जान तो नहीं लीजिए "।
मैंने बीच में ही अति ही विनीत भाव से पूछा-" क्या हो गया भाई ! जरा कहिए तो ! "
"क्या हो गया जो आप नहीं जानते हैं । ऐसा डॉक्टर बता दिया कि पत्नी की जान ही चली जाती । दवा क्या दिया चक्कर आने लगा । वह तो गिर जाती । वह छटपटा रही थी । वह तो कहिए कि एक गोलगप्पा वाला आ गया ,वहीं 10-12 गोलगप्पे मुंह में ठूँस दिए, तब जाकर जान में जान आई । आप साहब मित्र हैं कि यमराज ? आप ऐसे को तो ----।"
मुझे हँसी भी आ रही थी और अपने किए पर पछतावा भी । डॉक्टर लखोटी राय इस शहर के बहुत बड़े सुसंस्कृत और अनुभवी डॉक्टर हैं । तीस-चालिस गिन पहले नम्बर लगता है् । मैंने उनसे प्रार्थना की और आज का नंबर किसी तरह पाने में सफलता पाई । फीस माफ करवाया ।दबा भी अपने घर से दिया । रोगी ने दवा खाई भी नहीं ,फिर चक्कर आने का क्या चक्कर है-पता नहीं। गोलगप्पे को देखकर मुंह में पानी आना तो सुना था, पता नहीं पानी नहीं आया चक्कर आ गया, इसमें किसका दोस !
शाम के साढ़े पाँच बज गए थे । शौच आदि से निवृत हो हल्का-फुल्का प्राणायाम के लिए बैठा । मेरे मित्र एच डी पांडे जी आ गए , गप-शप होने लगा । तीन राउंड चाय चली । नाश्ता -पानी हुआ। आठ बज गए ,टसकने का नाम ही नहीं ले रहे थे । चाय के बाद उन्होंने सुनाया -
पान बिना जो चाय पिलाबे।सो नर कभी न सिद्ध कहाबे ।
करुणा काल में कहीं पर पान मिलता नहीं। किसी तरह व्यवस्था कर पीयूष ले आया । उनका रात्रि भोजन यहीं हुआ । सोने की तैयारी हुई ।
दरबाजा फड़फड़ाया,देखा- राजो जी पहुंचे हुए हैं ।जल्दी में थे । उनकी पैरवी करनी थी । लड़के की बड़ी इच्छा सिपाही में भर्ती होने की है । थोड़ी लंबाई कम है और पैर थक जाते हैं दौड़ने में । बस यही पैरवी करनी है । बेचारे पांडे जी तो चले गए । राहुल जी के लिए अनर्थक दो -तीन फोन किया ।वे जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे । मैं झूठ बोलता नहीं ,परंतु क्या करता, उन्हें आश्वस्त कर भेजा कि आपके पुत्र सिपाही हो जाएंगे । वह आश्वासन का मीठा मीठा प्रसाद लेकर चले गए । परंतु मैं सोचता रह गया - इस देश का इतना पैरवी वाला ,हिम्मतवाला, छप्पन इंची छाती वाला ,देश क्या,विदेशों मैं भी धौंसा धमकाने वाला साधक ,शोधक, पाठक नरेंद्र दास दामोदर दास मोदी जो स्वयं प्रधानमंत्री भी है ,चौकीदार ही बनकर रह गया , सिपाही नहीं बन सका ।इनको हम सिपाही कैसे बनाएँगे । खैर, आज तो टल गया । ठंढी रोटी, दाल ,सब्जी खाने की टेबल पर रखी थी ।इसे तीन तरफ से चूहे कुतर चुके थे । उसी में से जीवन रक्षक अंश निकाला और प्रेम पूर्वक प्रेम का प्रसाद पाया और सोने चला गया ।
रात्रि के ग्यारह बज गए हैं । निद्रा महारानी से प्रार्थना कर रहा हूँ, दो चार मच्छरों की बली भी चढ़ा आया ,फिर भी महारानी नहीं आईं। उनके स्थान पर आ गई फोन की घंटी । इस बार देश की सीमा से बाहर का फोन आया । फोन ने कहा- अभीए सो गए क्या -प्रेमी जी? यहाँ तो अभी दिन के दो ही बजे
हैं ।आंखें लग जा रही थीं । बोलना कुछ चाहता और जिह्वा कुछ बोल दे, फिर भी उनसे बात करनी पड़ी । उनकी बात लगभग दो घंटे की हुई । सारी समस्याओं के हल आज ही वे करना चाहते थे ,सो हो गया । बिछावन पर गया। निद्रा महारानी की उपासना की । मेरी प्रार्थना निद्रा रानी ने सुनी और अपनी सौतन को भेजकर स्वयं मजा लेती रहीं । घड़ी टिक-टिकाई-टन-टन-टन-टन। सुबह के चार बजै ।मंदिर के शंख और मसजिद से अजान दोनो एक साथ गुंजने
लगे ।
आज की डायरी यहीं समाप्त हुई ।
जय सियाराम ,जय -जय सियाराम ।
डॉ सच्चिदानंद प्रेमी
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