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कने पराएल भुरटल आलू

कने  पराएल भुरटल आलू

  जैसन ऊ बचपन।
 नानीघर के छुट्टा लेंबू आम आउ अमरूद
अखनी खेते खेत बिछ रहल जने तने बारूद
बाबा के मेंढुकी के पोरा पर पसरल पटकन।।

कतकी भोर पराती गावित मामा के अनुराग
सौसे राम रमैती भरके बाँटल छोह  सोहाग।
सपना बन के कने - कने उपहल अच्छत चन्नन।।

साँझ सँझौती से पहिले बाँटल जा हल चिपरी
रातविरात न छूट सकल कहिओ बरतन सखरी।
अइसन भेल सरेक सौख अगना  नाचे असगुन।।

पहुना के अगवानी ,मन से दे पीढ़ा-पानी
हिरदा  अब तो आप सुखे कर रहलो मनमानी
जिंदा में पानी न पूछे मरला पर तरपन।।

किरतन,कथा  ,गोरैया पूजा  सब पुरान पन्ना
कोलसारी के भसकल चूल्हा,उपह गेल गन्ना
बात पड़ोसी के मत पूछऽ अपने मे अनबन।।

पत बच्छर लंका जर रहलो कने मरल रावन
जे  भर दे हल अहरा ऊ अब सूख रहल सावन
 महगी बुढ़िआ बेच रहल हे अभिओ तो जारन।
।।रामकृष्ण
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