नहीं चाहिए ऐसी कविता
मुझे नहीं चाहिए ऐसी कविता
जिसमें बात हो
कजरारे नयनों की, घटाओं सी जुल्फों की
चोली की, चिलमन की
चितवन की, श्रृंगार की
प्रेमी और प्रेमिका के
मान और मनुहार की
जिसमें प्रेमी तोड़ता हो
प्रेमिका के लिए चाँद और तारे
मुझे नहीं चाहिए ऐसी कविता
जिसमें बात हो देवर संग
भाभी की ठिठोली की
महंगे कपड़े, बड़ी गाडियाँ
जायदाद और कोठी की
मुझे नहीं चाहिए ऐसी कविता
जिसमें बात हो
धर्म और मजहब के नाम पर
अराजकता फैलाने की
अपनी वतन परस्ती भूल कर
देश के टुकड़े करने,
उसे मिटाने की
सामाजिक कुकृत्यों पर
मौन हो जाने की
जीवन मूल्यों को रख कर ताख पर
सत्ता हथियाने की
मैं चाहता हूँ ऐसी कविता
जिसमें बात हो
खेत की, खलिहान की
फसल की, बागान की
युवाओं की पीड़ा, किसानों के प्राण की
संपूर्ण नारी समाज के
आत्मसम्मान की
जिनके दिलों में जिंदा है जमीर
उनके धर्म और ईमान की
बेरोजगारी,भ्रष्टाचार और महंगाई से लड़ते
आज़ाद हिंदुस्तान की
सरहद पर खड़े
सेना के जवान की
उनके शौर्य, साहस
पराक्रम और बलिदान की
सामाजिक विषमताओं से ऊपर उठकर
बनते नये हिंदुस्तान की
विवेकानंद का आचरण
और राम कृष्ण के ध्यान की
अर्जुन के गांडीव, श्री राम के बाण की
गीता के श्लोक, वेद और पुराण की
महाशक्ति के रूप में उभरते
भारत महान की
मैं चाहता हूँ ऐसी कविता
जिसमें बात हो
लक्ष्मी, पद्मिनी
महाराणा और चौहान की
भगत, सुभाष, हामिद
और कलाम की
निराला, तुलसी, कबीर
और रसखान की
मैं चाहता हूँ ऐसी कविता
जिसमें मानवता बचाने की
हर क्षण हो कोशिश
और कवि अपने साहित्य धर्म से
ना हो कभी विचलित।
-- वेद प्रकाश
देवरिया (उ प्र)
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