‘1921 मे हुए मोपला के दंगे की पृष्ठभूमि पहले विश्वयुद्ध से ही है । इस दंगे में सरकारी कर्मचारी, पुलिस और तत्कालीन अंग्रेज सैनिकों पर आक्रमण किए गए और हिन्दुओं का बडा नरसंहार किया गया । यह दंगा लगभग छः महीने चला । जिहादियों ने यह हमारा आंदोलन था और यह हमारी विजय थी, ऐसी घोषणा की; परंतु यह आंदोलन नहीं था, अपितु वह हिंदुओं का नरसंहार ही था । मोहनदास गांधी ने ‘मोपला दंगे में मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्याचार किए; परंतु ‘हिन्दू मुसलमान एकता के लिए’ हिन्दू ये अत्याचार सहन करें’ ऐसे अनेक धक्कादायक वक्तव्य किए थे । मोपला दंगा ‘जिहाद’ का ही एक भाग था, किंबहुना दंगाखोरों ने यह ‘जिहाद’ ही है, यह स्वीकार किया था’, ऐसा प्रतिपादन उच्च और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता कृष्ण राज ने किया । वे हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘मोपला दंगे : हिन्दू नरसंहार के 100 वर्ष !’ इस ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद में बोल रहे थे ।
‘दि धर्म डिस्पैच’ के संस्थापक-संपादक और लेखक श्री. संदीप बालकृष्ण ने इस समय कहा कि, खिलाफत आंदोलन के नाम पर अली बंधुओं ने अंग्रेजों के विरोध में ‘जिहाद’ पुकारकर मुसलमानों को एकत्रित किया । अंग्रेजों ने अली बंधुओं को बंदी बनाने के उपरांत मोपला में मुसलमानों ने भयानक नरसंहार किया । इन मोपलों ने केवल दंगे ही नहीं किए, अपितु सुनियोजित पद्धति से हिन्दुओं का सामूहिक हत्याकांड किया । इस दंगे में मुसलमान महिलाएं भी सम्मिलित थीं । खेद की बात यह है कि मोपलाआें के इस नरसंहार को इतिहास में इसे ‘मुसलमानों द्वारा अंग्रेजों के विरोध में कार्यान्वित आंदोलन’ लिखा गया और केरल की पाठ्यपुस्तकों में भी यह सिखाया गया; परंतु अब इससे संबंधित वास्तविकता सामने आ रही है ।
अन्नपूर्णा फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री. बिनिल सोमसुंदरम ने कहा कि, ‘मोपला नरसंहार में उजागर रूप से हिन्दुओं पर अत्याचार किए गए । इस्लामी सत्ता स्थापित करने के लिए ये दंगे किए गए थे । मोपला दंगे के 100 वर्ष पूर्ण होने के निमित्त केरल के हिंदुओं ने इस दंगे में प्राण खोए हुए पूर्वजों का श्राद्ध किया तथा विविध माध्यमों से जागृति करने का प्रयत्न किया । वर्ष 2018 से शबरीमला आंदोलन के समय से केरल का हिन्दू समाज बिना किसी राजकीय समूह अथवा अन्य किसी का समर्थन न होते हुए भी अब जागृत हो गया है ।
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