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जिसमें आत्मसम्मान नहीं

जिसमें आत्मसम्मान नहीं

    ~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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कहते हैं न कि कुत्ते का दुम
कभी सीधा नहीं रह सकता 
लगा दे कितना भी घी मलाई
या फिर आग लगा कर जला 
ले कर दीया और सलाई। 
जिसे ख्याल नहीं अपनी
ईज्जत की उन्हें क्या कहें, 
जिसे परवाह नहीं अपने
आत्मसम्मान का उन्हें क्या कहें, 
द्रौपदी अबला नारी खाई कसम 
अपने अपमान का बदला लेने की 
इतिहास गवाह है क्या हश्र हुआ
कौरव दल के शुरमाओं की
एक था चाणक्य अकेला
 खोल शिखा कसम खाई, 
लिया बदला अपमान का
नन्दबंश का अस्तित्व मिटाई 
मान सम्मान की खातिर
हम मर मिट जायेंगे, 
मिट जाए सर्वस्व हमारा
अपना शीश नहीं झुकायेंगे। 
नाम इतिहास बन जायेगा
युग युग तक सम्मान पायेंगे।              
जिसमें सोंचने की क्षमता नहीं, 
गलत कौन है कौन है सही 
कहते हो हम विद्वान हैं बड़े, 
तो फिर चंद रुपये के खातिर इतना नीचे क्यों गिरे, 
कौन है खाया कौन नहीं खाया
बेशर्मी का सीमा लाँघ कर
अपना सम्मान खुद गिराया
ऐसों का जीना भी क्या जीना
जिसमें बचा आत्मसम्मान नहीं।
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