Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

छलक पड़ा है प्यार

छलक पड़ा है प्यार

       ~ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
*********
अनबन  था "घरवाली" से कई वर्ष पुराना, 
देखो आज छलक पड़ा है प्यार वर्षों का । 
बात है एक रात की मौसम था बरसात का, 
बहस हुआ पुरजोर मजरा था टूटी खाट का। 

पुराना खप्परपोस मकान चुता था झर झर पानी, 
करता छोटी नौकरी प्राईवेट स्कूल था पास का। 
मिल जाता चंद रुपये कभी दो-चार महीने में, 
साग-भाजी जैसे-तैसे किराना भी होता उधार का।

बच्चों की पढाई-लिखाई बस यूँही चल रही थी, 
आभार प्रकट करता निर्देशक के परमार्थ का। 
घर में बना रहता था अर्थ का अभाव बड़ा भारी,
हर घड़ी देती चुनौती घरवाली मेरे पुरुषार्थ का।

रहने लगा था तनाव में खोया-खोया सा हर-पल , 
अभाव की जिंदगी से पनप रहा था भाव अपराध का। 
कर्ज ले कर मैं डूब गया था पुरा- पुरा माथे तक , 
तकाजे से उड़ गया था परखच्चे मेरे भेज्जा का ।

इस जीवन से हमारा हो गया था  मोह भंग, 
अभाव खलता था अपने सभी के प्यार का। 
अभाव में छुट गया था सभी अपनों का संग, 
गला घूंट गया था अब जीवन के उमंग का। 

आत्महत्या के निमित लगा दिया सीधा छलांग, 
स्थान चुना था एकांत रहे बड़ा सा एक कुऐं का। 
तब निकाल लिया था लोगों ने उस गहरे कुएँ से, 
मंजूर नहीं कुर्बानी मेरी कृपा रहा भगवान का ।

लॉटरी का एक टिकट खरीदा खुशी की आश में , 
आखिरकार अंत में आजमाने गया खेल किस्मत का । 
लॉटरी ड्रॉ के दिन टिकट का नंबर मिलाया , 
एक करोड़ का निकला लॉटरी बात है परसों का। 

वर्षो पहले से  मुंह  फुलाए घरवाली का, 
देखो आज छलक पड़ा है प्यार वर्षों का।।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ