श्मशान।
श्मशान नहीं है वीरान
चारो ओर चहल पहल
ढोल नगाड़े तुरही संग
राम नाम सत्य ध्वनि गुँजायमान
श्मशान नहीं है वीरान।
अघोर साधकों का जमघट
कहीं टूटे हुये कहीं जलपूर्ण घट
फूल मालाओं से सजी अर्थी
संवाद करती द्विअर्थि
स्वर्ग या नर्क जाने को तैयार
देहांतरयात्री के हरितबाँस यान
श्मशान नहीं है वीरान।
यहाँ भी व्यापार है
सूखी लकड़ी संग कफन
बिकने को तैयार है
जीते जी खाने को मिले न मिले
मृत कंठ तर करने को
शुद्ध घी बेशुमार है
तिल जौ चावल आहार है
मुखशुद्ध्यर्थ उपलब्ध पान
श्मशान नहीं है वीरान।
पुत्र करते मृतक को अग्निदान
परिजन करते गुण अवगुण बखान
भीड़ में चोर उचक्कों की नहीं पहचान
अवसर उचित देख कभी द्विचक्री
कभी चतुष्चक्री वाहनो की होती उड़ान
प्रशासन दृश्य देख हैरान परेशान
श्मशान नहीं है वीरान।
....मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"।
प्रदेश अध्यक्ष(बिहार)"शब्दाक्षर"।
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