-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
इस प्रकार धर्मविषयों में वेदज्ञ, सदाचारी, धर्मज्ञ ब्राह्मण ही प्रमाण है। उनके परामर्श से ही राज्यकर्ता निर्णय लें, यह धर्मशास्त्र की व्यवस्था है और इस व्यवस्था का पालन भारत के 350 से अधिक हिन्दू राज्यों में 15 अगस्त 1947 तक निरंतर होता रहा है। यद्यपि किसी-किसी हिन्दू राजा में भी प्रमाद आ जाये और वह शास्त्र की आज्ञा के पालन में शिथिल हो जाये, यह दोष स्वाभाविक है। परंतु हिन्दू समाज में अत्यन्त प्राचीन काल से यह परंपरा और इसकी मान्यता होने के कारण किसी भी शासक पर इस जनमत का दबाव रहना अनिवार्य है। इसीलिये आंग्ल ईसाई व्यवस्था से प्रेरित अथवा सत्ता हस्तांतरण की संधि के अनुरूप काम करने को उत्सुक राज्यकर्ताओं ने जनमत को ही अपने अनुकूल और नियंत्रित करने की व्यवस्था रची और शिक्षा तथा संचार माध्यमों पर राज्यकर्ताओं का एकाधिकार बनाने वाली व्यवस्था सुनिश्चित की। यहां यह महत्वपूर्ण है कि तत्कालीन कांग्रेस राज्यकर्ताओं ने यह जो शिक्षा और संचार माध्यमों पर अपना एकाधिकार सुनिश्चित किया, वह सत्ता हस्तांतरण की संधि के दायरे से बाहर की चीज है। संधि तो इंग्लैंड और भारत की साझा संस्कृति तथा साझा इतिहास-बोध भारत में राज्य के द्वारा फैलाये जाने के विषय में थी। परंतु शिक्षा और संचार माध्यमों पर राज्य का एकाधिकार सोवियत संघ के कम्युनिस्ट शासन से प्रेरित होकर स्थापित किया गया था। ब्रिटेन मेें ऐसी कोई परंपरा नहीं है और सत्ता हस्तांतरण करने वालों ने सोवियत संघ का अनुसरण करने की कोई शर्त नहीं रखी थी। अतः स्पष्ट है कि सत्ता हस्तांतरण की वही शर्त नये राज्यकर्ताओं ने मानी, जो उन्हें प्रिय थी। शेष उन्होंने सबकुछ अपने मन का ही किया। ब्रिटेन का अनुसरण करने पर बहुसंख्यकों के धर्म को राजकीय संरक्षण देना अनिवार्य होता। परंतु नये राज्यकर्ताओं ने वह तो नहीं ही किया, बहुसंख्यकों के धर्म को संरक्षण देना तो दूर, शासन द्वारा वित्त पोषित संस्थाओं में हिन्दू धर्म का शिक्षण भी निषिद्ध कर दिया। इसका इंग्लैंड या ब्रिटेन की किसी भी शर्त या किसी भी परंपरा से कोई रिश्ता दूर-दूर तक नहीं है। भारत में इंग्लैंड ने शासन का यह कर्तव्य सुनिश्चित किया था कि वे बहुसंख्यकों के धर्म को भी उतनी ही स्वाधीनता और वैसा ही संरक्षण तथा संसाधन देंगे, जैसा वे भारत में अपने शासन के अंतर्गत आने वाले (लगभग आधे भारत) क्षेत्र के अल्पसंख्यक समूहों के मजहब और रिलीजन को देंगे। नये कांग्रेस राज्यकर्ताओं ने ब्रिटिश भारत की उस परंपरा का भी क्रमशः सम्पूर्ण विलोप कर दिया और केवल अल्पसंख्यकों के रिलीजन और मजहब को विशेष संरक्षण देने की अनूठी व्यवस्था रची तथा शासन द्वारा वित्त पोषण के जरिये उन मजहब तथा रिलीजन की शिक्षा का विशेष प्रबंध किया। यह नागरिकों के साथ खुले भेदभाव तथा बहुसंख्यकों के प्रति विरोध की नीति एवं विचित्र परंपरा स्थापित की गई।
प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
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