फिर बता कमियां
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र "अणु"
एक समान,
कहाँ फिर पाती है-
अंगुलियां।।
और ये पैर,
कहाँ फिर पाता है-
उठा एडियां।।
कांपता है पैर,
इधर-उधर जाने में,
देख परिस्थितियां।।
थरथरा है हाथ,
खुद हाथ लगाने में,
पा कुरीतियां।।
कहाँ स्वीकारता है पेट,
हरेक का भेट-
चाहे हो लाख खुबियां।।
कहाँ लगता है मुंह,
देख देह रुह-
इशारे पा या युक्तियाँ।।
हर कोई नहीं होता संग,
अंग,प्रत्यंग,अंतरंग-
रहती हीं है दुरियां।।
कहाँ सबको मिलता कंधा,
चाहे वह लाख हो बंधा-
या फिर रहे मजबूरियां।।
हमेशा नहीं मिलती हैं अंगुलियां।
साथ रहकर भी रखती है दूरियां।।
खुद देखकर तुम तय करलो इसे-
वजह क्या है?फिर बता कमियां।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)804402.
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