सृजन पथ को क्यों छोड़ा है
रे ! विध्वंस पथ के राही सृजन पथ तू क्यों छोड़ा है।
जानबूझ या अनजाने में क्यों प्रगति रथ को मोड़ा है।।
तुम्हें अवाध गति से जाना था संकल्पित लक्ष्य को पाना था।
रोके चट्टान भीषण तूफान, तुम्हें हर चुनौती से टकराना था।।
साधन सुविधा विज्ञान- ज्ञान
तेरे लिए सभी सुलभ था।
सब छोड़ बता क्यों भटक गया माना क्यों पथ दुर्लभ था।।
हिंसा अशांति विध्वंस राह
चुन, स्वयं को दानवता संग जोड़ा है।
कहता "विवेक" मिट जाओगे, तू मानवता गर छोड़ा है।।
डॉ .विवेकानंद मिश्र , डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा गया बिहार 9431 2075 70 दिनांक 25 अगस्त 21
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