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कुंडलिया सम्हल कर चल

कुंडलिया सम्हल कर चल

चल बातें करें प्रेम की, शिकायत जाए पीट। 
खटाश भी कुछ कम हो, दूरियां भी जाय मिट।। 

दूरियां भी जाय मिट, गावें मधुर संगीत। 
लड़ते नहीं हर बात में, रूठ जायेंगे मीत।। 

प्रेम कुंजी है जीत का, कभी न होती हार। 
भरोसा जीते सबका, पाता जग में प्यार।। 

झूठे झगड़े क्यों करते, सब जायेंगें रूठ। 
वर्चस्व की लड़ाई में, बनते रहते झूठ।। 

धर्म-कर्म की बात करो, जीवित रहे संस्कार। 
सबकि नजर में वो गिरे, जो करता अहंकार।।

झूठ टिक नहीं सकता, सत्य की होती जीत। 
प्रेम पड़ जाता फीका, मरती नहीं है प्रीत।। 

अहंकार खा जाता है, मानवीय गुणों को। 
गिरा देता है सम्मान, जितना भी सम्हल कर चल ।। 
        ✍️ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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