और हम मात खाते रहे
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वो बिसातें बिछाते रहे
और हम मात खाते रहे
ऑख बंदकर भरोसा किया
आप ठेंगा दिखाते रहे
बात मेरी सुनी इक नहीं
सिर्फ अपनी सुनाते रहे
आपदा को भीअवसर बना
लाभ तुम ही उठाते रहे
ढाल हमको बनाकर सदा
काम अपने बनाते रहे
धन्य है बाहुबल आपका
धूल सबको चटाते रहे
हमको नादां समझ कर वो
पाठ उल्टा पढ़ाते रहे
बांट करके हमेशा हमें
आपस में लड़ाते रहे
नासमझ आप कैसे हैं 'जय'
उनका झण्डा उठाते रहे
*
~जयराम जय
पर्णिका-बी ,11/1,कृष्णविहार,आवास विकास,
कल्यणपुर,कानपुर 208017 (उ.प्र.)
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