सकारात्मक सोच को अपनाइए,
चाय ताजा बन रही आ जाइए।
साथ में बिस्कुट और मठरियां भी,
बात कुछ सुनिए अपनी सुनाइए।
कुल्हड में चाय का पुराना रिवाज है,
इसमें चाय का स्वाद भी लाजवाब है।
पर्यावरण को भी दूषित होने से बचाता,
मिट्टी से बना मिट्टी हो जाना ख्वाब है।
मिट्टी की सौंधी सुगंध चाय में भी मिलती,
ईश्वर से जैसे आत्मा धरा पर आ मिलती।
मिलता है रोजगार भी लघु उद्योग बढ़ते,
मशालों की सुगन्ध से थकान भी मिटती।
गुम हुआ जो खोजती निगाहें हैं,
सोच कर दर्द को भरती आहें हैं।
देखिए कुदरत को मुस्कुरा रही वो,
प्रकृति से जीवन की सम्भावनायें हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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