कइसे कइसे ?

कइसे कइसे ?  

(राजेंद्र पाठक)

काहे कपरा कोडले बानी..
का झुठ-साँच के जोड़ले बानी ?
कवन बात के थाम्ह बेआना
कवन थीम के बेचले बानी .?

भूखे भजन ना होय गोपाला
उठते रह गैल राउर माला।
कंठी माला,जपत भुआला,
हंसत,ठठात,फुलावत गाला।
रउआ गजब गेयानी बानी।
काहे कपरा कोडले ....

जवन रमायेन,तवन कहानी,
दोहा में सोरठा के सानी।
हई चौपाई,हऊ गुन गाई,
हई क्षेपकवा होने जाई।
कथा के आंटा सनले बानी।
काहे कपरा कोडले ....

अजी, साँच से संगत में,
जब रौआ पंजरा जाईं नां ?
झूठ के फेर में पड़ी नां रौआ,
ई दूनों से टरकाई नां, त..
गजबे गबरघिचोरले बानी।
काहे कपरा कोडले ....

अरथ-धरम के रौआ जोगी,
अरथ बतौनी,धरम के गोजी।
राउर गोजी,राउर लाठी,
पैना मार के रऊये हाँकी।
चैनल कवन चलवले बानी ?
काहे कपरा कोडले ....

नीति नियम के नित नूतनता,
फाटल, फेन किनाइल जूता।
जुग बदलल त रौओ बदलब ?
नया जूत से पुरनका फीता ?
ठेल के गोड घुसवले बानी।
काहे कपरा कोडले ....

खा के, पी के,लेके देके,
रौउये सब समझावल ह।
बात समझ ना आइल कोई,
ओकरो के फ़रिआवल ह।
तबो रोज जूझवले बानी ?
काहे कपरा कोडले ....
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