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सो अच्छा हुआ

सो अच्छा हुआ  ( मेरे बाल्यकाल में )

मुझे भाव-कुभाव वश (?)  
खाह-म-खाह डराया गया,  सो सचमुच अच्छा हुआ
सुनता था बड़ों की बातों को  मैं कभी तन्मय और कभी उन्मन
सो अच्छा ही हुआ ( ! )
भूतों का भय दिखाया गया :                                            
(यहाँ कीटाणु, विषाणु भी तो रहते हैं) मैं उधर फटका भी नहीं क्योंकि
 अज्ञ और कोमल मन में डर पैठा था,  सो अच्छा ही हुआ

गर्मियों की लू-लहर में ,दूर खाली खेतों में,   
मैदानों में सरकती सी वायु और गैस की ऊर्मियों में 
 प्रेतों के धावे देने की बात कही गयी :  
मैं घर के अंदर रहकर झुलसने से बचा,  
 सो अच्छा हुआ

सतरंगी के रंगों में,   
 अर्द्ध गोलाकार चित्रोपम निर्मिति में  
 रामजी की झलक दिखलायी गयी,  
आस्था बढ़ी भगवान में 
    सहज अनभूति मिली,
जीवन भर सरस रहने की,
सो  तो अच्छा हुआ
शुरु होती रातों में,                                                                     
मैदानी भागों में,                                                                                                
चमकते गैस के नन्हें गोलों में 'राकस' (राक्षस) का मायावी क्षुद्र रूप दिखाया गया : 
मैं घर में दुबका रहता (रात दुबकने के लिए ही तो होती है,
 सो अच्छा हुआ
परायी वस्तुएं बिना पूछे न लेने की हिदायतें:
मैं उन्हें लोष्ठवत समझता रहा,                   
फालतू के तू तू-मै-मैं से बचा,                                                                                       
सो अच्छा हुआ

बुरे काम,  नरकधाम , यमयातना:
मैंने डर में विश्वास बनाये रखा  
जो ताउम्र काम आया, 
अच्छे काम के लिए ही समय कम पड़ता है,
बुरे में समय क्या खपाना; 
सो अच्छा तो हुआ
परायी चीजें हड़पना,    
या लेकर लौटाना नहीं, 
तो अगले जन्म में वसूली:   
बातों में मेरी आस्था जम गयी,   
लोगों की नजरों में भी श्रेष्ठ रहा,
सो अच्छा हुआ

सफेद झूलते श्मश्रु वाले साधु बाबाओं कोभगवान का करीबी बताया गया: 
मेरी निष्ठा जम गयी,                                
आदमी से ऊपर उठे जीव समझता रहा: 
चलो बुजुर्ग नजरों में शरीफ बना
,सो भी अच्छा हुआ                 

और विकृत कर्मजाल वाले  कुमार्गी समाज में   अनेक जनों को बुरा -सा मानता                                                
 (अर्थात वैसे लोगों से अलग-थलग )                                                                                            
 सो अच्छा हुआ मुझे कुछेक जन सुधुआ-बुधुआ (नॉनसेंस) समझते,                                                                  
कुछेक (देवयोनि का) देवता और चौभुजी तक कहते                                                                                                                         मैं उधेड़-बुन भी करता:                        
चलो एक वैशिष्टय तो रहा, 
चरमोत्कर्ष के भाव।
( क्लाईमैक्स बाल ( इह) लीला का)   
अच्छा हुआ , अच्छा हुआ                                                   
सो सबसे अच्छा हुआ। 

© राधामोहन मिश्र माधव
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