लेखकीय सृजन-विषय
कविता में, निबंध में
(खासकर ललित निबंध में)
या कि प्रबंध में
कहानी में, कथा में
गीतों की व्यथा में
उपन्यास में, महाकाव्य में
समालोचना के भाव्य में वर्ण्य विषय-चयन से
कोई रचनाकार
पहचाना जाता है
अनुभूति की भावभूमि पर,प्रसंग के धरातल पर
अंतश्चेतन मनोभूमि पर ठहराव में
अंतरंग भाव में।
कालीदास ने कलित कल्पना चुनी
श्रीहर्ष ने 'स्वप्न'-साज
जायसी ने 'पद्मिनी' चुनी
कबीर ने समाज
तुलसी ने राम
शूर ने श्याम
रीतिकालीनों ने रूप-सौंदर्य चुना
जयशंकर ने जीवनदर्शन बुना
पंत ने 'अतिमा' मानी
महादेवी ने व्यथा जानी
दिनकर की ऊर्वशी (कामाध्यात्म)
उर में बसी जानकीवल्लभ की ' राधा ' मानस में लसी
अज्ञेय का अवचेतन मन संसार में भटका
रेणु का मन सुदूर लोक-जीवन में अटका ।
उर्वर मन मथित होता है कल्पक का, उपलब्ध होते हैं रत्न
( सीमाबद्ध मेधा, अमित एवं श्रेष्ठतर कल्पना )
जिज्ञासु मन प्रेरित होता है पाठक का, करने को कुछ यत्न
विषय-चयन का आधार-- सृजक का घनीभूत मानसिक लगाव
मन में गहरे जमे भावों का भटकाव और ढूँढ़ता पड़ाव ।
©राधामोहन मिश्र माधव
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