संस्कृत गीतम्
य:हरत्याशु चित्तम् जनानाङ्खलु
सैव कृष्ण: स्वयं पश्यतो पश्यत:।।
एष नवनीत चौर्ये$स्ति निपुणो महत्
गोपिकावल्लभो कथ्यते मोहन:।
यस्य हृदि नास्ति मोहो न चिन्ता परा
दैत्यसंहारको पश्यतो पशत:।।
दीनजनदु:खमपहारको सत्वरम्
दुर्जनेभ्यो$स्ति दण्डाधिकारं परम्
वादितम् वेणु मधुरं कृतन्नर्तनम्
येन वृन्दाबने पश्तो पश्यत:।।
नन्दजीवस्य प्राण: व्रजे प्रियवर:
कंसचाणूरशत्रुश्च कुब्जाङ्कृते
दायको सौम्य सौंदर्य माधुर्य नव
मोहितम् ताम् स्वयं पश्यतो पश्यत:।।
यस्य शयनेन क्षिपति प्रभाश्री रवि:
चन्द्रिका शोभमाना $खिलेमण्डले
भवति रात्रौ महाराश संयोजितम्
मुग्धजाताङ्गना: पश्यतो पश्यत:।।
रामकृष्ण
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