मत कर अब मनमानी बादल
तुम ऐसे मत गरजो बादल,
बरस सको तो बरसो बादल।
धरती प्यासी छटपट जीवन,
मत कर अब मनमानी बादल।।
ऐसे मत तरसाओ बादल।।
कड़ी धूप के तपन सहे हम,
लू के भीषण मार सहे हम।
तुम भी ऐसे मत तड़पाओ
दया करो तू बरसो बादल।।
ऐसे मत तरसाओ बादल।।
धरती हरी-भरी हो जाए,
आहर - पोखर सब भर जाए ।
नदी-नाले जी भर जल पाए,
हों हर्षित सब बरसो बादल।।
ऐसे मत तरसाओ बादल।।
सृष्टि तुम्हीं से, जीवन तुमसे,
अब बरसो, अस्तित्व तुम्हीं से
सुनकर तू संदेश हमारा
मूर्छा दूर भगाओ बादल।।
ऐसे मत तरसाओ बादल।।
डॉ. विवेकानंद मिश्र,
डॉ. विवेकानंद पथ गोल बगीचा, गया (बिहार)।
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