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नालंदा का एक ऐसा गांव जहां 5 साल बाद की गयी धान की रोपनी,अनहोनी के डर से भागनबिगहा के किसानों ने छोड़ दी थी खेती|

नालंदा का एक ऐसा गांव जहां 5 साल बाद की गयी धान की रोपनी,अनहोनी के डर से भागनबिगहा के किसानों ने छोड़ दी थी खेती|

हमारे संवाददाता मनीष प्रसाद की खास रिपोर्ट 

जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से नौ किलोमीटर दूर भागबिगहा गांव। यहां के अधिकतर लोग खेतिहर हैं। लेकिन, अनहोनी का डर ऐसा कि पांच साल से धान की खेती से ही तौबा कर ली। इस साल यहां के लोगों ने फिर से धान की खेती शुरू की है। यह सब संभव हो पाया स्व. हरिहर महतो के पोते शिक्षाविद् पवन कुमार के प्रयास से। सोमवार को पहले पूजा की गयी। उसके बाद धनरोपनी। फिर क्या था, गांव के अन्य किसान भी ट्रैक्टर लेकर खेतों में उतर गये।
यह जिले का एकलौता गांव था, जहां सिर्फ रबी फसलें लहलहाती थीं। खरीफ मौसम में खेत वीरान रहते थे। खेती का रकवा 300 बीघा है। चार वार्डों वाले गांव की आबादी करीब साढ़े तीन हजार है।
क्या था मामला?:

वृद्ध किसान कृष्णनंदन प्रसाद, उपेन्द्र प्रसाद, विशुनदेव प्रसाद, सत्येन्द्र प्रसाद, डोमन चौधरी, रविरंजन पांडेय, मोहन कुमार, सुधीर चौधरी व अन्य कहते हैं कि गांव परंपरा से बंधा था। हरिहर महतो ही सबसे पहले रोपनी करते थे। इसके बाद ही अन्य किसान। साल 2015 में वृद्धावस्था और तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने खेती छोड़ दी। परंपरा टूटी तो अनहोनी के डर से अन्य किसानों ने भी धान की खेती से मुंह मोड़ लिया।  

अनहोनी से हारी हिम्मत:

किसान सुनील प्रसाद, शत्रुध्न पांडेय, भूषण पांडेय बताते हैं कि हरिहर महतो के निधन के बाद कइयों ने परंपरा तोड़ने की कोशिश की। लेकिन, बार-बार हुए हादसों के कारण बटाईदार भी मिलने बंद हो गये। आखिरकार, गेहूं, चना, मसूर, मक्के, सरसों की खेती करके किसी प्रकार जयीवन-यापन करने लगे।

 कहते हैं अधिकारी :

जिला कृषि पदाधिकारी संजय कुमार ने बताया कि पांच साल के बाद भागनबिगहा के किसानों ने धान की खेती शुरू की है। यह काफी ही खुशी की बात है। किसानों को धान के खेती के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का लाभ दिया जाएगा।
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