और फिर एक दिन

और फिर एक दिन 

जन्म से मृत्यु पर्यन्त
जिम्मेदारियों का बढ़ता
       पर्वत
चलते रहना मानव
     अनवरत
रुकना मत कभी थकना
         मत
     महकाना खुशियों से
         मन का आंगन
    कलियों और कोंपलों
       का रखना ध्यान
    स्वस्थ संस्कारों की
         रखना आन
    न हो वाक् युद्ध का
          घमासान
पक्षी बन उन्मुक्त
      विचरना
नायक बन सन्मार्ग पे
        चलना
कुम्हार बन मिट्टी को
         गढ़ना
बालक का मार्ग प्रशस्त
          करना
     करना अटल समाज
           की स्थापना
     रूढ़ियों का करना
             खात्मा
     केवल भाईचारे की
            हो भावना
     सुशिक्षित जन हो ये
            कामना
चिंतन, मनन और
     निदिध्यासन
साधना, सेवा और
       संकीर्तन
और फिर एक दिन
होगा धर्म का पारायण
         स्वरचित
      डॉ राखी गुप्ता
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