ज़िन्दगी हारी कहां हैं मौत से
ज़िन्दगी हारी कहां हैं मौत से,
जिन्दगी तो जूझना सिखाती है।
छोड़ कर नफरतें एक दूसरे से,
जिन्दगी प्यार से रहना सिखाती है।
छोड़कर जाती कभी जब जिन्दगी,
देह वस्त्र बदल आती तब ज़िन्दगी।
कब मरा कोई यहां मौत से, मगर
बुरे कर्मों से मर जाती है ज़िन्दगी।
सत्कर्म होने लगे प्रधान जब,
जिन्दगी को होने लगे गुमान तब।
मर कर भी जीवित शिवा लक्ष्मी,
मौत भी यह देखकर हैरान अब।
अ कीर्ति वर्द्धन
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