आशा की एक किरण
सूरज की पहली किरण
मत छोड़ ईश्वर की शरण
आशा की है एक किरण
दूर होंगे दुःख दारूण
मत कर मानव खुद
पर गुरुर
प्रकृति के हाथों
सब मजबूर
छोड़ मद के नशे
का सुरुर
खुशियों के पल
आएंगे जरूर
विधाता की उस अनमोल कलम से
धैर्य के उस अभेद्य
जतन से
अंतर्मन के उस
आत्मबल से
जन्म मरण के उस
प्रबंध से
अंधकार जो गहराया है
चित्त को भरमाया है
मानव को सहमाया है
धरती मां को जगाया है
विपदा हो कितनी
भी भारी
मानव ने उम्मीद
न हारी
इतिहास बदलने की
है बारी
लक्ष्य पाने की
है जिम्मेदारी
साहस, धैर्य का
लहरा परचम
निर्बल हो न
मचा हड़कंप
बैखौफ खड़ा हो
तू हरदम
खुशहाली का
हो आगमन
फूलों को खिलना ही
होगा
उम्मीदों को जगना ही
होगा
साथ मिल लड़ना
ही होगा
विजय पताका
फहराना ही होगा।
डॉ राखी गुप्ता
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