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कहीं किसी रोज़

कहीं किसी रोज़

बादलों का यूं घुमड़ना
पक्षियों का यूं चहकना
महामारी का यूं दहकना
एक दूजे को ढांढस बंधाना
   विषाद का समय कब ठहरेगा
    समस्याओं का पहाड़ कब पिघलेगा
     शिशु निडरता से फिर कब खेलेगा
     मानव उन्मुक्त हो कब विचरेगा
काश कहीं किसी रोज़ वो पल मिल जाए
दोस्तों की फिर महफ़िल जम जाए
ठहाकों से सराबोर मौसम हो जाए
उम्मीदों का गगन मिल जाए।
   
डॉ राखी गुप्ता
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