अनीता पाठक
चार सखियां मेरे जीवन में थीं
मेरी हिम्मत बन कर रहीं खड़ी
कभी ना साथ छूटे मेरा उनसे
मेरे दिल में ऐसी ही चाह रही
रूप सुन्दरी ज्योति नैना सखी
सुर कोकिला मेरी पहचान रहीं
अन्तर्मन की खुशी सखी मेरी
पग पग पर उत्साहित की थी
वक्त वक्त की बात अनोखी
मेरी सखियां मुझ से रूठ गई
रूप सुन्दरी ज्योति नैना मेरी
सुर कोकिला सब ही छोड़ चली
अन्तर्मन अब भी उत्साहित
खुशी से मिल एक योजना की
रच कर लौकिक श्रृंगार अनोखी
प्रीत का सरगम स्वर में भर दी
अनीता पाठक
डीडीयू
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