माधव को अब लाओ
मगन अपराधी हैं सारे बने हैं तंत्र के प्यारे।
दोनों के बीच पिसते हैं यहां इंसान बेचारे।।
देखे थे क्या- क्या हम सपने,
लगे उल्टे हम सब जपने।
शिक्षा , चिकित्सा और कानून- व्यवस्था,
यहां सब ध्वस्त हुए अपनें।।
देखो अंधा बना शासन ,जहां बहरा है प्रशासन।
दबंग यहाँ सबकुछ पाते कहर निर्बल पर हैं ढाते।।
निरंकुश हाय छली दोनों हैं ,जन- द्रोही बली दोनों।
बचाए कौन , अब टक्कर ले कौन इनसे ।।
जहां बुद्धि के प्रांगण में बुद्धिजीवी पड़े हैं मस्त।
"विवेक" तुम ही अब बचाओ ,
यहां माधव को शीघ्र लाओ।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्र राष्ट्रीय महासचिव मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान डॉक्टर विवेकानंद पथ गोल बगीचा गया बिहार
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