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माधव को अब लाओ

माधव को अब लाओ

मगन अपराधी हैं सारे बने हैं तंत्र के प्यारे।
दोनों के बीच पिसते हैं  यहां इंसान बेचारे।।

देखे थे क्या- क्या हम सपने,                                            
 लगे उल्टे हम सब जपने।
शिक्षा , चिकित्सा और कानून- व्यवस्था,   
                                                                       यहां सब ध्वस्त हुए अपनें।।

देखो अंधा बना शासन ,जहां बहरा है प्रशासन।
दबंग यहाँ  सबकुछ पाते कहर निर्बल पर हैं ढाते।। 

निरंकुश हाय छली दोनों हैं ,जन- द्रोही बली दोनों।
बचाए कौन , अब  टक्कर ले कौन इनसे ।।

जहां बुद्धि के प्रांगण में बुद्धिजीवी पड़े हैं मस्त।
"विवेक" तुम ही अब बचाओ ,                                          
   यहां माधव को शीघ्र लाओ।।

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