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अब दूर-दूर हुए सब नाते

अब दूर-दूर  हुए सब नाते

अब दूर-दूर  हुए सब नाते 
कहाँ किसी को नाते हैं भाते ।
सबकी है अपनी -अपनी पड़ी
 सब ओर कुछ माँग खड़ी ।

बेचैनी है हर ओर जिधर निहारो
ध्यान कर , अपने को सुधारो ।
अब सामंजस्य कठिन है भाई 
बचना , है हर ओर रुसबाई ।

पहले अपना अंतस्चित्त निहारो 
तभी अन्य पर कुछ भी विचारो।
जमाना हुआ अपने में दिवाना
होम करते निज हाथ न जलाना ।

राधामोहन मिश्र माधव 
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