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तृप्तिअंताम्

तृप्तिअंताम्

        --:भारतका एक ब्राह्मण.
         संजय कुमार मिश्र 'अणु'
जीवन में 
लगा रहता है
मानव निरंतर 
अपनी उद्दाम लिप्सा के
समन में
लगातार वह बेतहाशा
करता रहता है श्रम
भागता है इधर-उधर
पालकर वह भ्रम
अंजान अज्ञात
गांव,पहाड़,निर्जन,
वन उपवन में
अपने और अपने परिवार का
भरने के लिए उदर
दिन रात खटता रहता है
संघर्षरत बाहर ले अन्दर
जैसे सबकुछ जुटाना चाहता है
अपने इस रुग्ण,क्षणभंगुर-
जीवन में
और अंततः वह 
थक हारकर
मन में अनेक
अनंत लिप्सा रखकर
एक अशांत
फिर निकल पड़ता है
दुसरी अनंत यात्रा पर
बस यहीं पर
लगा रहता है लोगों को
कि ये आत्मा
कहीं फिर से न लग जाए
अपनी पीछली 
इच्छाओं की पूर्ति में
तब उस आत्मा की शान्ति
खोजते हैं सब
अर्पण में समर्पण में
जो वह संग्रह करते रहा है
अपने प्रत्येक क्षण में
कहीं उसकी आत्मा
भटकती न रह जाए
इस भौतिक संसाधन में
इसलिए हमारे पुरखों ने
ये निकाला समाधान
कर अनुपम खोज
उस अशांत आत्मा के प्रति
करो अंत में दान और भोज
कि उसकी आत्मा को
परम शांति मिले
और न पड़े बंधन में
         वलिदाद, अरवल (बिहार)
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