सबकी रोटी
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
छिनकर सबकी रोटी,
है बांट रहा बोटी-बोटी।।
नीलाम कर इज्जत-
साज रहा अपनी गोटी।।
हमारी कुर्सी बची रहे-
बांटा कोटि-दर-कोटि।।
टोपी पहनने के लिए वह-
टिका पोछ मिटाया चोटी।।
सुनो--कह रहा है आज-
बड़ा मुंह पर बात छोटी।।
है दिख रही सफेदी में-
मुझे क्रियाहीन बुद्धि मोटी।।
निश्चित सबका पतन होगा-
रही गर ऐसी क्रिया खोटी।।
वलिदाद, अरवल (बिहार)दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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