महर्षि भरद्वाज की शिक्षा नीति
महर्षि भरद्वाज ऋग्वेद के छठे मंडल के द्रष्टा माने जाते हैं ।इसमें 765 मंत्र हैं तथा अथर्ववेद में भी इनके 23 मंत्र हैं ।वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का स्थान ऊँचा माना जाता है ।ये महर्षि अंगिरा के पौत्र एवं देव गुरु बृहस्पति के पुत्र हैं ।अंगिरा के पुत्र होने के कारण इन्हें अंगिरस भी कहा जाता है ।अंगिरा के और भी पुत्र थे लेकिन बृहस्पति उनमें सबसे ज्ञानी थे ।इसीलिए बृहस्पति को देवताओं का गुरु होने का गौरव प्राप्त था । महर्षि भरद्वाज के दस पुत्रों में ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र ऋषि ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रद्रष्टा मानी गयी है। महर्षि भारद्वाज की अन्य दो पुत्रियाँ भी थीं, जिनमें से एक (सम्भवत: मैत्रेयी) महर्षि याज्ञवल्क्य से और दूसरी इडविडा (इलविला) विश्रवा मुनि से ब्याही गई थीं । ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी के अनुसार 'कशिपा' भारद्वाज की पुत्री कही गयी है। इस प्रकार ऋषि भारद्वाज की 12 संताने मन्त्रद्रष्टा ऋषियों की कोटि में सम्मानित थीं। बड़े गहन अनुभव के कारण भरद्वाज ऋषि की शिक्षा के आयाम अतिव्यापक थे।
महर्षि चरक से इन्होंने अपरिमित आयु प्राप्त किया था ।इतिहास के अनुसार भरद्वाज ऋषि काशीराज देवदास के पुरोहित थै और उनके अगले तीन पुस्तों यानी प्रवर्धन और उनके पुत्र क्षात्र तक पुरोहित होने का उल्लेख मिलता है ।यह त्रेता और द्वापर का संधि काल रहा होगा ,।शुक्राचार्य के पास ऐसी विद्या थी जिससे शरीर को रोगमुक्त किया जा सकता था ।इसका नाम संजीवनी था ।महर्षि भरद्वाज के पुत्र कच ने उनसे यह संजीवनी विद्या प्राप्त की थी ।देवगुरु बृहस्पति कि दो पत्नियाँ पूर्व से थीं जिनके नाम शुभा और तारा थे ।अपने पिता की तीसरी पत्नी ममता के पुत्र थे भरद्वाज और कच ।
महर्षि ने आयुर्वेद एवं व्याकरण का ज्ञान इंद्र से प्राप्त किया था । इद्र ,ब्रह्मा और बृहस्पति के बाद चौथे वैयाकरण के रुप में भी इनका नाम गिना जाता है । । ऋक्तन्त्र 10।181।2, 1/4 ।
महर्षि भारद्वाज ने व्याकरण ,आयुर्वेद संहिता ,धनुर्वेद ,राजनीति शास्त्र ,यंत्र सर्वस्व ,अर्थशास्त्र , शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों की रचना की है ।
महर्षि भारद्वाज का आश्रम प्रयाग में था और प्रयाग को महर्षि भारद्वाज के कारण ही इतनी प्रसिद्धि मिली या यूं कहें कि प्रयाग को महर्षि भारद्वाज ने हीं बसाया था ।आज भी संगम के पास उनका आश्रम दर्शन देने के लिए तैयार है ।महर्षि भारद्वाज का आश्रम पाठशाला था ।इन्होंने ही सर्वप्रथम एकत्र शिष्यों को एक साथ पढ़ाने का कार्य आरंभ किया ।प्रयाग में ही उन्होंने घरती के सबसे बड़े गुरूकुल(विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे। वे शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा थे। इस विश्वविद्यालय में जीवन की हरेक समस्यायों के समाधान एवं आवश्यकताओं से सम्बन्धित विषयों का अध्यापन हुआ करता था जिसमें शिक्षा,
राजतंत्र ,अर्थशास्त्र ,शस्त्र विद्या, धनुर्वेद ,विधि ,अभियंत्रण ,विज्ञान और मंत्रों के दर्शन की पढ़ाई प्रमुख थी ।महर्षि स्वयं ऋग्वेद के छठे मंडल के
द्रष्टा ऋषि हैं ।
आज राइट्स बंधुओं पर हम फिदा हैं जो बिल्कुल असत्य है कि उन्होंने पहले विमान बनाया था ।आज के युवा वर्ग को यह जानकर खुशी होगी कि पुष्पक विमान के उल्लेख पर महर्षि भरद्वाज ने आधुनिक काल गणना पद्धति के अनुसार ईशा के 600 वर्ष पूर्व सबसे पहले विमान बनाया था ।वैसे उसी समय उन्होंने एक विस्तृत विमान शास्त्र लिखा था जिसका उल्लेख आज भी मिलता है ।भारद्वाज के विमान शास्त्र में यात्री विमान के अलावे लड़ाकू विमान ,स्पेस शटल यान और एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर उड़ान भरने वाले विमानों की चर्चा है । सबसे आश्चर्य तो है कि उस ग्रंथ में उन्होंने विमान को अदृश्य कर देने की तकनीक का भी उल्लेख किया है ।विमान शास्त्र की टीका लिखने वाले बोधानन्द लिखते है-
निर्मथ्य तद्वेदाम्बुधिं भरद्वाजो महामुनिः ।
नवनीतं समुद्घृत्य यन्त्रसर्वस्वरूपकम् ॥
प्रायच्छत् सर्वलोकानामीप्सिताज्ञर्थ लप्रदम् ।
तस्मिन चत्वरिंशतिकाधिकारे सम्प्रदर्शितम् ॥
नाविमानर्वैचित्र्यरचनाक्रमबोधकम् ।
अष्टाध्यायैर्विभजितं शताधिकरणैर्युतम ॥
सूत्रैः पञ्चशतैर्युक्तं व्योमयानप्रधानकम् ।
वैमानिकाधिकरणमुक्तं भगवतास्वयम् ॥
अर्थात - भरद्वाज महामुनि ने वेदरूपी समुद्र का मन्थन करके यन्त्र सर्वस्व नाम का ऐसा मक्खन निकाला है, जो मनुष्य मात्र के लिए इच्छित फल देने वाला है। उसके चालीसवें अधिकरण में वैमानिक प्रकरण जिसमें विमान विषयक रचना के क्रम कहे गए हैं। यह ग्रंथ आठ अध्यायों में विभाजित है तथा उसमें एक सौ अधिकरण तथा पाँच सौ सूत्र हैं तथा उसमें विमान का विषय ही प्रधान है।
महर्षि भरद्वाज के पूर्व भी कई आचार्यों ने विमान विज्ञान से सम्बन्धित कई ग्रंथ लिखे हैं। यथा-
( १ ) नारायण कृत - विमान चन्द्रिका
( २ ) शौनक कृत व्योमयान तंत्र
( ३ ) गर्ग - यन्त्रकल्प
( ४ ) वाचस्पतिकृत - यान बिन्दु ,
( 5) चाक्रायणीकृत खेटयान प्रदीपिका
( ६ ) धुण्डीनाथ - व्योमयानार्क प्रकाश।।
चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। महर्षि भृगु ने उन्हें धर्मशास्त्र का उपदेश दिया। तमसा-तट पर क्रौंचवध के समय महर्षि भरद्वाज अपने गुरु महर्षि वाल्मीकि के साथ थे। वायुपुराण के अनुसार उन्होंने आयुर्वेद संहिता आठ भागों में लिखकर अपने शिष्यों को सिखाया था। चरक संहिता के अनुसार उन्होंने आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। अर्थात ऋषि भारद्वाज ने ही प्रयाग को बसाया था। प्रयाग में ही उन्होंने घरती के सबसे बड़े गुरूकुल(विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे। वे शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा थे।
ऋषि भरद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र और कालान्तर में भगवान श्री ब्रम्हा जी द्वारा प्राप्त हुआ था। अग्नि के सामर्थ्य को आत्मसात कर ऋषि ने अमृत तत्व प्राप्त किया था और स्वर्ग लोक जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया था - तैoब्राम्हण3/10/11)
सम्भवतः इसी कारण ऋषि भरद्वाज सर्वाधिक आयु प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक थे। चरक ऋषि ने उन्हें अपरिमित आयु वाला बताया है -सूत्र-स्थान1/26)
महर्षि भरद्वाज ऐसे पहले विमान-शास्त्री हैं, जिन्होंने महर्षि अगस्त्य के समय के विद्युत् ज्ञान को अभिवर्द्धित किया-
प्रचेता अग्निर्वेधस्तम ऋषि: ॥(ऋक्तन्त्र 6।14/2)
पश्यतेममिदं ज्योतिस्मृतं मर्त्येषु ॥ (ऋक्तन्त्र 6।9।4)
महर्षि भारद्वाज ने "यंत्र सर्वस्व" नामक ग्रंथ लिखा था, जिसमे सभी प्रकार के यंत्रों के बनाने तथा उन के संचालन का विस्तृत वर्णन किया। उसका एक भाग वैमानिक शास्त्र है। इस ग्रंथ के पहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पच्चीस ग्रंथों की एक सूची है, जिनमें प्रमुख हैं-
अगस्त्यकृत - शक्तिसूत्र, ईश्वरकृत - सौदामिनी कला, भरद्वाजकृत - अशुबोधिनी, यंत्रसर्वसव तथा आकाश शास्त्र, शाकटायन कृत - वायुतत्त्व प्रकरण, नारदकृत - वैश्वानरतंत्र, धूम प्रकरण आदि।
तैत्तिरीय ब्राह्मण 3।10।11
गंभीर अध्ययन और ज्ञान के अभाव में हम अपने प्राचीन ऋषि-मुनियों के बारे गलत धारणा बनाए हुए हैं कि वे जंगलों में रहते थे, जटाजूटधारी थे, भगवा वस्त्र पहनते थे,रहने का कोई आश्रय नहीं था ।मात्र बृक्षों की छाया या पत्तों से बनी झोपड़ियों में रहते थे ।परन्तु कभी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि रावण ऐसा ज्ञानी भी ॠषियों की कुटिया को क्यों निशाना बनाता था ।
इसलिए कि वे ॠषि दिन-रात ब्रह्म-चिन्तन में निमग्न रहते थे और प्राप्त ज्ञान से उसका अनुसंधान करते थे ।अनुसंधान से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग समाज कार्य ,राज़्ट्र कार्य में होता था ।संसारिकता से उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं था।
हम अपने महान पूर्वजों के जीवन के उस पक्ष को एकदम भुला बैठे, जो उनके महान् वैज्ञानिक होने को न केवल उजागर करता है वरन् सप्रमाण पुष्ट भी करता है। महर्षि भरद्वाज हमारे उन प्राचीन विज्ञानवेत्ताओं में से ही एक ऐसे महान् वैज्ञानिक थे जिनका जीवन तो अति साधारण था लेकिन उनके पास लोकोपकारक विज्ञान की महान दृष्टि थी।
वेदों मे भी विमान संबंधी उल्लेख अनेक स्थलों पर मिलते हैं। ऋषि देवताओं द्वारा निर्मित तीन पहियों के ऐसे रथ का उल्लेख ऋग्वेद (मण्डल 4, सूत्र 25, 26) में मिलता है, जो अंतरिक्ष में भ्रमण करता है-
आदाय श्येनो अभरत्सोमं सहस्र सवाँ अयुतं च साकम् ।
अत्रा पुरन्धिरजहादरातीर्मदे सोमस्य मूरा अमुरः॥
ऋग्वेद -4/36/1
देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों द्वारा निर्मित पक्षी की तरह उडऩे वाले त्रितल रथ, विद्युत-रथ और त्रिचक्र रथ ,
पुष्पक विमान (जो धनपति कुबेर के पास था जिसे उनके ही भाई लंकापति रावण ने वलात् छीन लिया था और अपने पास रख लिया था) इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। महाभारत में श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों का वर्णन आया है ।
लेकिन हम ज्ञान के अभाव एवँ पश्चिमी सभ्यता के दवाव में इन सबको कपोल-कल्पित मान बैठे है।
सुविख्यात भारतीय वैज्ञानिक डॉ0 वामनराव कोटेकर ने लगभग साठ वर्ष पूर्व 1960-70 के बीच, अपने एक शोध-प्रबंध में पुष्पक विमान को अगस्त्य मुनि द्वारा निर्मित बतलाया था, जिसका आधार `अगस्त्य संहिता´ की एक प्राचीन पाण्डुलिपि थी। महर्षि अगस्त्य के `अग्नियान´ ग्रंथ के सन्दर्भ अन्यत्र भी मिले हैं। इनमें विमान में प्रयुक्त विद्युत्-ऊर्जा के लिए `मित्रावरुण तेज´ का उल्लेख है। महर्षि भरद्वाज ऐसे पहले विमान-शास्त्री हैं, जिन्होंने अगस्त्य के समय के विद्युत् ज्ञान को अभिवर्द्धित किया।
ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था । विभिन्न देवी देवता , यक्ष , विद्याधर आदि विमानों द्वारा यात्रा करते हैं इस प्रकार के उल्लेख पुराणों में आते हैं । त्रिपुरासुर ने अंतरिक्ष में तीन अजेय नगरों का निर्माण किया था , जो पृथ्वी, जल, एवं आकाश में आ- जा सकते थे । भगवान शिव ने उन्हें नष्ट किया था।
महर्षि भरद्वाज ऐसे ऋषि है जिन्हें त्रेता युग में भगवान श्री राम से मिलने का सौभाग्य दो बार प्राप्त हुआ था। एक बार श्री राम के वनवास काल में तथा दूसरी बार श्रीलंका से अयोध्या लौटने के समय। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण तथा तुलसीदास कृत रामचरितमानस में मिलता है |
महाभारत काल के पूर्व ही भारतवर्ष में विमान विद्या का विकास हो गया था । क्यों कि उस समय महाभारत में श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों यात्रा का वर्णन मिलता है ।ॠषियों की तपस्या एवँ उनके ज्ञान-कौशल से केवल विमान ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में नगर की स्थापना एवं रचना भी हुई थी | इसके अनेक संदर्भ प्राचीन वांग्मय में मिलते हैं ।
निश्चित रूप से उस समय ऐसी विद्या अस्तित्व में थी जिसके द्वारा भारहीनता (zero gravity) की स्थति उत्पन्न की जा सकती थी । यदि पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण शक्ति का प्रयोग उसी मात्रा में उसकी विपरीत दिशा में किया जाए तो उसका घनत्व शून्य हो जाता है और उस स्थिति में भारहीनता उत्पन्न कर पाना संभव हो जाता है |
विमान की परिभाषा अष् नारायण ऋषि ने दी है- जो पृथ्वी, जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है ।
वहीं शौनक ॠषि के अनुसार- एक स्थान से दूसरे स्थान पर आकाश मार्ग से जानेवाला यान विमान कहलाता है ।
आ विश्वम्भर के अनुसार - एक देश से दूसरे देश या एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर जो वायु मार्ग से जा सके, उसे विमान कहते हैं ।
अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत शोध मण्डल के सराहनीय प्रयासों के हम आभारी हैं जिसने अपने विशेष प्रयास से प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज की। फलस्वरूप् जो ग्रन्थ मिले, उनके आधार पर भरद्वाज का `विमान-प्रकरण´, विमान शास्त्र प्रकाश में आया।
इस ग्रन्थ का अध्यन बारीकी से करने पर आठ प्रकार के विमानों का पता चला : -
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला। इसे भुलना नही होगा कि बिजली की खोज महर्षि अगस्त ने ही की थी ।
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।
3. धूमयान - गैस से चलने वाला।
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला।
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला।
इस तरह महर्षि भरद्वाज की शिक्षा मानव जीवन के लिए अनिवार्य,उपयोगी तथा उत्कर्षक थी ।आज का गुरुकुल या विद्यालय-विश्ववद्यालय उन्ही की सोंच का प्रतिफल है ।अपने राष्ट्र के युवावर्ग को इसे जानना भी चाहिए और गौरवान्वित भी होना चाहिए ।महर्षि को शत्-शत् नमन।डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
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