मुझको सबसे प्यारा है,
आशुतोष पाठक
मेरा पहला घर।
न कुछ की चिंता थी,
न कुछ का डर।।
मै कहाँ था मै तो,
माँ के जिस्म का हिस्सा था।
माँ के सबसे प्यारा,
जीवन का किस्सा था।।
अपने लहू से सींचा मुझे,
दी सांसो से जान।
यहीं से सुरु हो गई,
मेरे जीवन की पहचान।।
मेरे नन्हे कदमो पर माँ,
प्यार से चुम्बन लेती थी।
मेरी हंसी देख कर माँ,
बाँहों में मुझे भर लेती थी।।
खूब हँसी थी माँ मेरी,
जब मै रोया था पहली बार।
माँ से ही मिल सकता है,
इतना अनोखा प्यार।।
चेहरा देख कर ही माँ,
कैसे सब जान जाती है।
दिल में जो भी बात छुपी,
पल में पहचान जाती है।।
दिल में जो झांक ले,
वो नज़र कहाँ से लाती हो माँ।
आज मन है बड़ा दुखी,
खबर कहाँ से लाती हो माँ।।
तुझसे लिपट जाऊं तो,
उस सुख को न लिख पाऊँ।
तुझसे कोई बड़ा नही माँ,
तुझको शीश नवाऊँ।।

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