करनी है रक्षा उस प्रण की जिसे लिया है गोवर्द्धनधारी ने|
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने यहाँ त्याग की बात की है।त्याग से तात्पर्य यहाँ प्राण त्यागने की बात नहीं है ,बल्कि विश्राम का संकेत है।अपनी बुद्धि और क्षमता जहाँ काम करना बंद कर दे वहाँ जीव को पराश्रय का त्याग कर भगवदाश्रय को ग्रहण कर लेना चाहिये।यह तब संभव हो पाता है जब हम तमाम भौतिकताओं से अपने आप को अलग कर लेते हैं।क्योंकि परमात्म साधन के लिये ये भौतिक उपादान बाधक होते हैं।इसीलिये श्री कृष्ण ने भगवद्कृपाप्राप्ति के हेतु पूर्ण विश्राम का यहाँ संकेत दिया है।यह विश्राम यदि मात्र शरीर के लिये है तब तो यह भोग का कारण बन जाता है लेकिन यही विश्राम जब शरीरी के होगा तो योग का कारण बनेगा।इसीलिये शायद शारीरिक निद्रा को तामस और परमात्म साधन हेतु किये विश्राम को सात्विक की संज्ञा प्रदान की गई है।जो भी इस विश्राम की अवस्था को प्राप्त कर पाने सक्षम होता है वह गुणातीत हो जाता है।परिश्रम और पराश्रय सांसारिकता को प्राप्त करता है लेकिन भगवदाश्रय और विश्राम स्वान्तःसुखाय होता है।
शायद इसी भगवदाश्रय के हेतु यह विश्राम का पल हमें प्रकृति ने प्रदान किया है।आईये इसका सदुपयोग करें।जय श्री कृष्ण। राधे राधे।
मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"***दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
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