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ईंसांफ

ईंसांफ

माई के  सिद्ध  दरवार में, 

अब कुछ नया होगा क्या। 
या क्या  फिर  वही  होगा , 
जो मंजूरेखास खुदा होगा। 
        गर भरोसा हो  किसी पर, 
        तभी उम्मीद भी जगती है।
        विश्वास नहीं मनमें कभी तो,
        सदा निराशा ही हाँथ लगती है। 
जो स्वयं से कभी किया नहीं हो नेक काम, 
ठग कर  लोगों को पाया हो अपना मुकाम। 
वो क्या  कभी  करेगा  विश्वास  किसी पर, 
जो  सदा  किया है  दुसरों की नींद  हराम। 
        अगर उस पार जाना है नदी के, 
        लहरों को चिरना ही होगा। 
         राह रोके बनकर चट्टान कोई, 
         उन चट्टानों को भी तोड़ना होगा। 
मुझे  विश्वास  है  माई  पर, 
सिर्फ माई के पहरेदारी पर।
फेर दो पानी माई पीतांबरा, 
झूठे अहंकारी केअरमानों पर।

    .        डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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