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कुछ रूप सलोना

कुछ रूप सलोना (कविता)

एक बार फिर
बड़ी तीव्र गति से
बढ़ रही है यहां
कोरोना।
मिशनरी सतर्क है
सजग है समाज
जगी हुई सरकार
रोकने में लगी है आवाज
कहकर यह कि
हम नहीं चाह रहे हैं 
आपको खोना।
स्कूल खुला है
सिर्फ बच्चों की पढाई बंद है
सभी कार्यालय खुले हैं
सिर्फ और सिर्फ कार्य बंद है
जारी है यातायात
रेल,गाड़ी, हवाई जहाज
मौल,होटल और बाजार
पुलिस पब्लिक को दे रहा है झाड़
इकठ्ठा मत हो इधर
लगाओ नहीं भीड़भाड़
नहीं तो हम शुरू कर देंगे 
दोनों हाथों से धोना।
घर में रहो
बिल्कुल दूरी बनाकर
धोते रहो हाथ पांव
खुद का मुंह छुपाकर
एक भी कारगर नहीं है अभी
इस पर कुछ जादू टोना।
इधर बढ़ रही है बिमारी
और उधर हो रही है जवानों पर 
बमबारी पर बमबारी
है आतंकवादियों का जिद 
बस गिनते रहो लाश
रोज कितने हो रहे शहीद
नागवार लग रहा है
मुझे अपने कंधे पर ढोना।
हमारा तंत्र विफल है
तभी वह सफल है
दल के नाम पर यहां
बहुत दलदल है
मंगल भी कर रहा अमंगल
जरा आंखें खोलकर
एकबार देख ले मोना।
यदि पाना है निजात और काबू
तो कान खोलकर सुन ले
मेरी बात को बाबू
स्वत: स्फूर्त करना होगा जन मन
तभी जमेगा जादू
सुधार नहीं पाओगे राजदण्ड से
न अपनी व्यवस्था के घमंड से
यदि चाहते हो ये मिट जाय
महामारी की भद पिट जाय
तब तो दिखाना हीं होगा
कठोर अनुशासन का
अपना कुछ रूप सलोना।
       --:भारतका एक ब्राह्मण.
        संजय कुमार मिश्र 'अणु'
        वलिदाद अरवल (बिहार)
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