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क्या है फर्क

क्या है फर्क

कुछ लोग

लगे हुए हैं मेरे पीछे
कि कब मौका मिले और
हम इसे आदमी बना दें।
ठीक इसी तरह
और भी कुछ लोग  हैं
मेरे पीछे मौके की ताक में
कि वह कब मिले और
हम इसे इंसान बना दें।
पर मैं नहीं चाहता हूं
आदमी और इंसान बनना
मैं मानव‌ हूं और चाहता हूं
महामानव होना
 मुझे आदमी और इंसान बनाने कि 
आखिर तुम्हें क्यों चाह है
 मैं पुछता हूं जरा बताओ तो
 क्या मानव होना गुनाह है?
        तुम्हें बनना है तो बनों
        मैं जैसा हूं वैसा रहने दो
        कुत्सित कोशिश मत करो
       मानव हूं मानव हीं रहने दो
तुम इंसान बनों या आदमी
इसमें तेरा अपना तर्क है।
इसे मैं समझता हूं,न कि तुम
इन शब्दों में आखिर क्या फर्क है
         --:भारतका एक ब्राह्मण.
            संजय कुमार मिश्र 'अणु'
           वलिदाद अरवल (बिहार)
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