Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अपराजेय अमर

अपराजेय अमर 


(कविता)
कंधे पर यज्ञोपवीत,
और-
उपर से चेहरा गर्वित,
कमर में सफेद धोती,
उसपर गोलियों की हार
बगल में पिस्तौल और-
मूंछों पर ताव,
बिना पूछे बताता है-
इसका स्वभाव,
गुलामी की दशा में-
शायद मिला था घाव,
अपने मां बाप का वह-
अकेला संतान,
ठान लिया मन में
मुझे आजाद कराना है-
ये गुलाम हिन्दुस्तान,
और लडता रहा लड़ाई
कभी उठा पटक तो-
कभी पिस्तौल भी चलाई
था वह ब्राह्मण स्वाभिमानी।
नाम चंद्रशेखर आजाद-
अपराजेय अमर बलिदानी।।
      ---:भारतका एक ब्राह्मण.
        संजय कुमार मिश्र 'अणु'
        वलिदाद अरवल (बिहार)
----------------------------------------
आजाद के बलिदान दिवस पर रचित समर्पित शब्द सुमन।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ