
जो गद्दारों के बाप बने हैं
लाल किले पर नहीं,
किया तूने भारत पर प्रहार।
हिंसा, हंगामा दंगे का तुमने किया घृणित व्यापार।।
हाथ तिरंगा , मन में दंगा , राष्ट्र विकास से रख खार ।
भारत के निश्चल किसानों को, किया बहुत शर्मसार।।
राष्ट्र विरोधियों को एकत्र कर, गुंडों को जिसने पाला ।
आज भले अंजान बने वे , कल आग में घी था उसने डाला।।
कल था कोई नहीं अज्ञात, जिसे था उसे नहीं यह ज्ञात ।
पर ,"विवेक" उन बेशर्मों का होता राष्ट्र न जात।।
हम पकडें अब उन तत्वों को, जो आस्तीन के सांप बने हैं। राष्ट्रविकास की गति अवरुद्ध कर गद्दारों के बाप बने हैं।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा , डॉक्टर विवेकानंद पथ , गोल बगीचा , गया , बिहार
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