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अपमानित हूँ, स्तब्ध हूँ, क्रोधित हूँ

अपमानित हूँ, स्तब्ध हूँ, क्रोधित हूँ

संध्या मिश्रा  

राष्ट्र ध्वजा को अपमानित कर लाल किले पर चढ़ बैठे
नई  कहानी  गद्दारी  की  आज कमीने   गढ़  बैठे 

वीरों के बलिदान का देखो उनको कैसा मूल्य मिला
आज तिरंगा अपमानित है शर्मिदा  है  लाल  किला

खालिस्तानी पाकिस्तानी टुकड़े टुकड़े वाले हैं
इनको गंगा मत समझो ये केवल गन्दे नाले हैं

क्या एक प्रदेश के रहने वाले ही किसान कहलाते हैं 
जो बाकी किसानो के हक़ को लूट लूट कर खाते हैं 

दाता वाता कोई नहीं ने ये नीच निकम्मे अभिमानी 
कुछ कुत्ते बस  चाह रहे हैं करना केवल मनमानी 

लज्जित करके संविधान को गुंडे आग लगाते हैं
झूठे नीच जिहादी देखो दिल्ली रोज जलाते हैं

कल तक जिनको मान गर्व का प्रहरी समझा जाता था
गुरुओं सा बलिदानी उनको केहरी समझा जाता था

शौर्य शेर सा बलिदानों परिपाटी ही भूल गए
खालिस्तानी फंडिंग से ही  सारे नल्ले फूल गए

देश विरोधी धर्म विरोधी क्या किसान हो सकते हैं
देश को आग लगाने वाले भी  महान हो सकते हैं

क्या किसान वर्दी वालों पर ले ट्रैक्टर चढ़ सकते हैं
आयाम नए गद्दारी के ये क्या किसान गढ़ सकते हैं

जिन कुत्तों के वर्दी पहने महिलाओं पर वार किया 
नारी की मर्यादा भूले कुछ भी नहीं विचार किया 

डंडे पत्थर तलवारों से आखिर कैसा इनका नाता है
ऐसा  हिंसक   ऐसा  बर्बर  तुम्हीं  कहो ये दाता है

बहुत हुआ सम्मान इन्हें अब उत्तर भी मिल जाने दो
देशद्रोहियों, गद्दारों को  मिलकर लाठी डंडे खाने दो

इनको  उत्तर  नहीं  दिया  तो  ये दंगे करवा देंगे
हम ऐसे ही  चुप बैठे तो  देश को भी तुड़वा देंगे

नहीं रगों में दूध दही अब और न दिल में देश रहा 
चरस  अफीम  बहे  लहू  में  इसीलिए  ये वेश रहा 

जान  चुके औकात तुम्हारी अब ये लिख कर धरवा लो 
और  तुम्हारे  बाप  में  दम  है  तो  क़ानून बदलवा लो
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